Satasang Program





(प्रात: एवं सायंकालीन सन्त-स्तुति)

सब सन्तन्ह की बडि़ बलिहारी ।। टेक ।।
उनकी स्तुति केहि विधि कीजै,
मोरी मति अति नीच अनाड़ी ।। सब0।।
दुख-भंजन भव-फंदन-गंजन,
ज्ञान-ध्यान-निधि जग-उपकारी ।
विन्दु-ध्यान-विधि नाद-ध्यान-विधि ,
सरल-सरल जग में परचारी ।। सब0।।
धनि ॠषि-सन्तन्ह धन्य बुद्ध जी,
शंकर रामानन्द धन्य अघारी ।
धन्य हैं साहब सन्त कबीर जी,
धनि नानक गुरू महिमा भारी ।। सब0।।
गोस्वामी श्री तुलसि दास जी,
तुलसी साहब अति उपकारी ।
दादू सुन्दर सूर श्वपच रवि,
जगजीवन पलटू भयहारी ।। सब0।।
सतगुरू देवी अरू जे भये हैं,
होंगे सब चरणन शिरधरी ।
भजत है 'मेंहीं' धन्य-धन्य कहि,
गही सन्त-पद आशा सारी ।। सब0।।

(प्रात: कालीन गुरू-स्तुति)#7631458713