Shri ji ki Astha

किसोरी मोहि अपनी करि लीजै ।
और दियें कछू भावत नाहीं, श्रीवृन्दावन रज दीजै ॥
खग मृग पशु पंछी या वन के, चरन शरन रख लीजै ।
व्यास स्वामिनी की छबि निरखत, महल टहलनी कीजै ॥