Bhakti sabha
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"कही जनक जसि अनुचित बानी"
पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा
कही जनक जसि अनुचित बानी। बिद्यमान रघुकुल मनि जानी॥
पाछें पवन तनय सिरु नावा। जानि काज प्रभु निकट बोलावा॥
जस जस सुरसा बदन बधावा, तासो दूं कपि रूप दिखावा सत् योजन, तेहि आनन कीन्हा, अति लघु रूप पवन-सुत ....
नाना नाना वाहन नाना वेशा, बिहसे सिव समाज निज देखा।
सीता रावण संवाद!!!
लक्ष्मण शक्ति का दृश्य !
विश्वामित्र का राजा दशरथ से राम-लक्ष्मण को माँगना!
विश्वामित्र और दशरथ के संवाद!
ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार॥
नाथ एक बर मागउँ राम कृपा करि देहु। जन्म जन्म प्रभु पद कमल कबहुँ घटै जनि नेहु॥
राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की॥ यह मुद्रिका मातु मैं आनी।
हनुमान जी का अशोक वाटिका में प्रवेश|
जेहि विधि होई नाथ हित मोरा करो सुवेगि दास मैं तोरा|
प्रनवउँ परिजन सहित बिदेहू। जाहि राम पद गूढ़ सनेहू ॥ जोग भोग महँराखेउ गोई। राम बिलोकत प्रगटेउ सोई ॥
दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ। पुनि नभ धनु मंडल सम भयऊ॥
प्रथम तिलक बसिष्ट मुनि कीन्हा। पुनि सब बिप्रन्ह आयसु दीन्हा॥
समय जानि गुर आयसु पाई। लेन प्रसून चले दोउ भाई॥* भूप बागु बर देखेउ जाई। जहँ बसंत रितु रही लोभाई॥
यह रहस्य काहू नहिं जाना। दिन मनि चले करत गुनगाना।।
प्रभु कर कृपा पावँरी दीन्हि सादर भरत शीश धरी लीन्ही||
पद कमल धोइ चढ़ाइ नाव न नाथ उतराई चहौं। मोहि राम राउरि आन दसरथसपथ सब साची कहौं॥
मांगी नाव न केवट आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना।।
सीता सचिव सहित दोउ भाई। सृंगबेरपुर पहुँचे जाई॥
सुनु जननी सोइ सुतु बड़भागी। जो पितु मातु बचन अनुरागी॥
बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि। महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥
अगनित रबि ससि सिव चतुरानन। बहु गिरि सरित सिंधु महि कानन।।
गुरु गृह गये पढ़न रघुराई, अल्पकाल विद्या सब पाई ..
चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा। फल खाएसि तरु तोरैं लागा॥
जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥