297 SATGURU TERA SAHARA 297

ये वो दर अमानती है दुनिया के खजाने से ,इसी दर पर बचे है हम हर इक आफत क इ आने से।
बलाऊ से हुए मेह्फूस इनकी चौखट को पाने से , यही रहत का दरवाज़ा है बैठे है ठिकाने पे।
ये वो दर है दुनिया मे जहां रेहमत लुटाई जाती है,और हर दुःख दर्द के मारो की बिगड़ी बनायी जाती है।
इरादे लाख बनते हैं और बनके टूट जाते है, वही दरबार आते हैं जिन्हे सरकार बुलाते है।
बोल साचे दरबार की जय।

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