Guru Nal Gallan

सब से पहली बार गुरबाणी की “काव्य रूप” में भाव पूर्ण व्यख्या, भाई गुरदास जी ने “कबित्तों” (कविताओं) द्वारा की। उन का मानना था कि ख्यालों की उड़ान ऐसी हो, कि एक साधारण जज्ञासू की पकड़ में भी आ जाए, और गुरबाणी के गूहड रहस्यों का संदेश भी सरल भाषा मेँ हरेक को समझ लग सके। गुरु अर्जुन देव जी ने प्रेम में भीग के, भाई गुरदास जी की इस काव्य रचना को “गुरबाणी की कुंजी का दर्जा दिआ।”

उन के बाद “काव्य-रूप” मेँ गुरबाणी के और भी रूपांतरण हूए । बटवारे से पहले, “खुआजा दिल मोहम्मद साहिब” ने सुखमनी साहिब का एक बहुत ही भावपूर्ण काविआतमक टीका किआ ।

उन के इसी प्यार भरे उद्द्म को आगे बढ़ाते, “श्रद्धा व् सतकार” के फूल भेंट करते, कुछ “वलवले”, प्रगटाते हुए, गुरबाणी को “हुंगारे” देते, प्यार मेँ सराबोर हो के “गुरु से की हुई बातें” आप संगतों के सन्मुख रखने की “याचक” ने एक कोशिश की है ।