“MAHAVIRDHAM” Himatnagar
122 गुरु कहान द्रष्टि महान १ ३ — जिसमें पर्याय नहीं ऐसे द्रव्य पर पर्याय की दृष्टि करना है !
123 गुरू कहान द्रष्टि महान १ ४ — क्रमबद्ध के निर्णय का फल द्रव्यद्रष्टि होना अनंतसुखी होना ।
121गुरू कहान द्रष्टि महान १ २ — ज्ञान वैराग्य के सिंचन से अमृत मिलेगा और राग से दुर्गति मिलेगी !
120 गुरु कहान द्रष्टि महान १ १ — वास्तव में पर को जानता ही नहीं ! थोड़ा धैर्य से समझना चाहिए !
119 GKDM १ २ — भगवान आत्मा मिथ्यात्व का कर्ता भी नहीं ! समयसार तो अशरीरी होने का शास्त्र है !
118 गुरु कहान द्रष्टि महान १ १ — जिनवर ऐसा कहते हैं की जीव उपजता भी नहीं और जीव मरता भी नहीं !
117 वैराग्य प्रवचन — संयोग की अनित्यता ! दुखों की है अपारता !
116 GKDM १ ४ — जानने की पर्याय भी सत् होने से “है”! निरपेक्ष है। जो “है” उसको करना क्या !
115 GKDM १ ३ — उदय है ! बंध है ! निर्जरा है ! मोक्ष है ! है उसको जानता है ! है उसको करना क्या !
3 प्रवचन पण्डित रजनीभाई दोशी, समयसार बंध अधिकार,दि.17.11.25,समय रात्रि 20.30 से 21.15
114 गुरु कहान द्रष्टि महान १ २ — बंध का कर्ता नहीं, ज्ञाता है ! मोक्ष का कर्ता नहीं, ज्ञाता है !
113 गुरु कहान द्रष्टि महान १ १—भगवान आत्मा राग का कर्ता भोक्ता नहीं है।व्यवहार से ज्ञाता मात्र है!
2-प्रवचन पण्डित रजनीभाई दोशी, समयसार बंध अधिकार,15.11.25,समय रात्रि 20.30 से 21.15
112 GKDM १ १ श्रुत पंचमी पर्व — देव शास्त्र गुरु के प्रति जो राग शुभभाव है वह भी हिंसा है !
111 गुरु कहान द्रष्टि महान १ ४ — औदायिक, औपशमिक, क्षयोपशमिक और क्षायिकभाव से भी आत्मा अगम्य है !
110 गुरु कहान द्रष्टि महान १ ३—पात्र बिना के साधु ढूँढ लिये ! धन्य मुनिदशा ! धन्य आचार्य कुंदकुंद !
109 गुरु कहान द्रष्टि महान १ २ — सर्व गुणांश वह समकित ! 1
108 गुरु कहान द्रष्टि महान १ १ — भगवान आत्मा निरंतर वर्तमान निरंतर वर्तमान है ।
107 गुरु कहान द्रष्टि महान १ ४ — काल में मोक्ष और अकाल में मोक्ष, फिर भी दोनों एक ही समय में !!!
1-प्रवचन पण्डित रजनीभाई दोशी, समयसार गाथा 1,समय रात्रि-20.30 से 21.15,दि.09-11-2025
106 गुरु कहान द्रष्टि महान १ ३ — श्रावक के रत्नत्रय बहीरतत्त्व है ! अतींद्रिय आनंद भी परद्रव्य है!
105 गुरु कहान द्रष्टि महान १ २ — शुद्धरत्नत्रय की भक्ति करनेवाले को निर्वाणभक्ति है !
104 गुरु कहान द्रष्टि महान १ १ — संवर, निर्जरा और मोक्ष की पर्याय भी हेय है ।!
103 GKDM — पुरुषार्थ क्रमबद्ध परिणमन का स्वीकार अकर्तापने का स्वीकार ज्ञायक का स्वीकार !
प्रवचन पण्डित रजनीभाई दोशी,दि.04.11.25,समय रात्रि 20.30 से 21.15
102 गुरु कहान द्रष्टि महान १ ४ —
101 GKDM १ ३ — क्योंकि गुणस्थान आदि पुद्गल का जीव कर्ता नहीं है, उसका भोक्ता भी पुद्गल ही है।
100 गुरु कहान द्रष्टि महान १ २ — धर्म का मूल सम्यक् दर्शन प्राप्त करने का धोरिमार्ग ब्रह्ममार्ग!
99 GKDM १ १ — मिथ्यात्व सहित १३ गुणस्थान अचेतन होने से एक पुद्गल ही उनका कर्ता है !!
98 गुरू कहान द्रष्टि महान १ ४ — कुशास्त्र का स्वरूप । शुभ से निर्जरा का निषेध ।