और फिर उम्र भर मैं महकता रहा। Shivendra Mishra kaavypath Lucknow
Автор: Shivendra Mishra : A Poetic Sensation
Загружено: 2020-02-19
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अगर हो जंग अपनों से तो बेशक हारना अच्छा
दिलों का हो सके संगम तो सब कुछ वारना अच्छा।
सदा मस्तक रहे ऊँचा, न झुकना तुम कभी लेकिन
चरण प्रभु राम के हों तो स्वयं को तारना अच्छा।
भाव के ताप से हिम पिघलता रहा
दूरियों में भी अनुराग पलता रहा।
सत्य, निष्ठा व विश्वास के मेल से
अनवरत प्रेम का दीप जलता रहा।।
उस मिलन अग्नि में तन दहकता रहा
मन खयालों में रह-रह बहकता रहा।
इक कली ने मुझे छू लिया इक दफ़ा
और फिर उम्र भर मैं महकता रहा।।
उपज क्या खूब होती है यहाँ के खाद पानी में
कि कलियाँ फूल बनती हैं निखरके राजधानी में।
महकती हैं सभी कलियाँ खुमारी खूब चढ़ती है,
मगर खुशबू अलग ही है लखनवी रातरानी में।
बड़े लटके बड़े झटके नज़र आते यहाँ हमको
कहीं कुछ भूल न कर दूं फिसलकर इस जवानी में।
उजाले ही करें रौशन उजाले ही करें चौपट
बड़े नाजुक से पहलू हैं हमारी भी कहानी में।
जरूरत ही नहीं तुमको कभी कुछ और करने की
उगाओ प्यार के पौधे हृदय की बागवानी में।
बड़े ध्यानी बड़े ज्ञानी तुम्हें बहकाने बैठे हैं
चलो बेटा शिवेन्दर तुम जरा सी सावधानी में।
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मर्महीन अखबारों सा व्यवहार कहाँ से लाते हो?
झूठमूठ पर सच्चा जैसा प्यार कहाँ से लाते हो?
आँखें, जुल्फें, नखरे, आंसू, प्यार भरी मुस्कान शरारत
जिद मनवाने के अमोघ हथियार कहाँ से लाते हो?
आंखे थीं, या बातें थीं, या आंखों से की थीं बातें
हम भी फिसल गए ऐसा इजहार कहां से लाते हो?
बाबू, बेबी, सोना, जानू, टेडी, पागल जाने क्या क्या
एक शख्स में तुम इतने किरदार कहां से लाते हो?
दो दिन की बस आंख-मिचौली फिर सीधा धड़कन पर कब्जा!
बोलो आखिर तुम इतनी रफ्तार कहां से लाते हो?
सुनकर जिसको हिल जाती हैं जड़ें हुकूमतदारों की
यार शिवेन्दर तुम इतने उद्गार कहां से लाते हो?
Shivendra Mishra
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