Chadariya jhini re jhini_चदरिया झीनी रे झीनी Vocal- Vinod Dubey, Tabla- Vijay Lal
Автор: Bhaav Darpan
Загружено: 2025-11-28
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भजन का सार
“चदरिया झीनी रे झीनी” में संत कबीर यह कहते हैं कि
हमारा शरीर एक कोमल, पतली और पवित्र चदरिया (चादर) की तरह है, जिसे परमात्मा ने बहुत स्नेह से बुना है।
जब यह चदरिया हमें मिली थी, तब यह बिल्कुल साफ, निर्मल और पवित्र थी।
लेकिन जीवन में चलते-चलते मनुष्य लोभ, मोह, क्रोध, पाप और गलतियों से इसे मैले कर लेता है।
कबीरदास जी समझाते हैं कि
यह शरीर ईश्वर की अमानत है।
हमें इसे ज्ञान, प्रेम, भक्ति और अच्छे कर्म से फिर से पवित्र बनाना चाहिए।
जब यह चदरिया ईश्वर को लौटानी है, तो यह साफ और पवित्र होनी चाहिए।
अर्थात —
मनुष्य को अपने मन और कर्मों को शुद्ध रखकर, परमात्मा की भक्ति करते हुए जीवन बिताना चाहिए।
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