सत्संग से जितना ईश्वरप्राप्ति सुलभ है उतना अन्य किसी साधन से नहीं | Sant Shri Asaram Bapu Ji Satsang
Автор: Sant Shri Asharamji Ashram
Загружено: 2017-01-29
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Sant Shri Asaram Bapu Ji Satsang,
Ahmedabad (Gujarat)
7 Nov, 2010
सत्संग के कुछ मुख्य अंश:
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सत्संग से जितना सुलभ ईश्वर प्राप्ति हो सकती है, उतना किसी साधन से नहीं हो सकती...
कितना भी योग करो, कितना भी व्रत करो, कितना भी दान करो, कितना भी तप करो...
ईश्वर प्राप्ति ऐसे तत्त्वज्ञान के सत्संग से जितनी सुलभ हो सकती है, उन्नति सत्संग से जितनी तेजी से होती है, सुलभ होती है, और जितनी ऊँचाई तक ब्रह्मज्ञान का सत्संग ले जाता है, उतना और साधन नहीं ले जा सकता...
साठ हज़ार वर्ष तपस्या रावण की, हिरन्यकश्यप की, ईश्वर के साथ मिलाने में सहायक नहीं हुई...
अलग अपना वर्चस्व, अलग अपनी विशेषता बनाई, मारे गए...
और शबरी ने, गुरु का थोड़ा सानिध्य लिया, और अपना 'मैं' ईश्वर में मिला दिया...
ईश्वर उसके झूठे बेर खाने में आह्लादित हो रहे हैं, आनंदित हो रहे हैं...
मीरा ने रविदास की समझ में अपनी समझ मिला दी...
भक्ति का फल ये नहीं कि आपको धन मिल जाये, सत्ता मिल जाये, भगवान मिल जाये...
नहीं नहीं, भक्ति का फल इससे बहुत ऊँचा है...ये तो बहुत छोटे खिलोने हैं...
वैदी भक्ति में अनुरागा भक्ति आ जाये, अनुरागा से प्रेमाभक्ति आ जाये, और परा भक्ति आ जाये...भक्ति से भक्ति मिले...
और आप ईश्वर से विभक्त ना हों - ये भक्ति का फल है...
धन मिल जाये, वैकुण्ठ मिल जाये, फलाना मिल जाये - जो मिलेगा, वो बिछड़ जायेगा...
रावण को जो मिला बिछड़ गया...
भक्ति का फल है कि जो कभी ना बिछड़े...ऐसा परम धन मिल जाता है...मिला हुआ है, पता चल जाता है...
भागो हि भक्ति...
नित्य और अनित्य का भाग करके तुम्हारे अंतःकरण में अनुभव करा दे - ये भक्ति है...
तुम क्या हो और उलझे कहाँ हो...समझ पड़ जाये, बस...
आठ प्रकार की उपासना भगवान ने बतायी:
मूर्ति की उपासना, जल की उपासना, सूर्य-चन्द्र की उपासना, अग्नि देव की उपासना, ब्राह्मण की उपासना, वैदिक संस्कृति की उपासना...
इन सब में सर्वोपरि ब्रह्मवेत्ता, आत्म-साक्षात्कारी की उपासना, बोले, वो तो साक्षात मेरे भी आदरणीय हैं...
मैं भी अवतार लेकर उन्ही के चरणों में शीश नवाता हूँ, और उन्ही के ज्ञान से तृप्त होता हूँ...
ऐसा ब्रह्मवेत्ता का आदर अपने जीवन का आदर है, अपनी सात पीढ़ियों का आदर है...
कितनी भी तपस्या से आज आप इतनी कमाई नहीं कर सकते जितनी सत्संग से हो रही है...
कितने भी जप, तप, उपवास से इतना लाभ नहीं होता, जो आज हो रहा है आपको...
भले अभी बच्चे हो, हीरे-जवाहरात की कद्र नहीं है, समझते नहीं हो, लेकिन आज के सत्संग को आप तोलने बैठो, तो ऐसी कोई तराजू ही नहीं है...
ब्रह्माजी बना नहीं सकते तराजू...बनायेंगे तो तगड़ी टूट जायेगी...क्योंकि अनंत को तोलने वाला अंत वाला तराजू है...वो सफल नहीं होगा...
आपको इतना लाभ हो रहा है...
इसीलिए मैं भी आपकी और अपनी भूख-प्यास की परवाह किये बिना बोले जा रहा हूँ, बैठा हूँ...
न जाने किसको कौन सा शब्द लग जाये....कोई शब्द न भी लगे तभी भी मेरा संकल्प तो है ना कि आपका मंगल हो, वो संकल्प तो काम करेगा...
आपके मंगल के लिये बोल रहा हूँ तो...
नारायण...नारायण...नारायण...ॐ....
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Satsang se jitna Ishvar Praapti sulabh hai, utna anya kisi saadhan se nahin...
Endearingly called 'Bapu ji'(Asaram Bapu Ji), His Holiness is a Self-Realized Saint from India. Pujya Asaram Bapu ji preaches the existence of One Supreme Conscious in every human being; be it Hindu, Muslim, Christian, Sikh or anyone else. For more information, please visit -
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