SINGORGARH FORT || सिंगौरगढ़ किला || DAMOH HISTORY ||AL-RAFI FILM'S || 2022
Автор: Al-rafi Film's
Загружено: 2022-07-28
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भारत में कई ऐसी जगह हैं जिनका रहस्य आज भी बरकरार है। इन रहस्यमयी जगहों के बारे में सुनकर हर कोई हैरान रह जाता है। किसी किले से रहस्यमयी आवाजें आती हैं तो किसी मंदिर में माता दिन में अलग-अलग तीन रूप बदलती हैं। भारत में भगवान शिव का ऐसा मंदिर भी है जो दिन में दो बार पानी में डूब जाता है। इसके अलावा भी कई ऐसी जगह हैं जिनका रहस्य आज भी अबूझ पहेली बना हुआ है।
ऐसी ही एक जगह है सिंगौरगढ़ का किला। इस किले का रहस्य आज तक कोई जान नहीं पाया है।
मध्य प्रदेश के दमोह में सिंगौरगढ़ का रहस्यमयी किला स्थित है। इसे गढ़ साम्राज्य का पहाड़ी किला माना जाता है। 1564 में रानी दुर्गावती के शासन काल में इस किले की काफी अहमियत थी। माना जाता है कि इस किले में रानी दुर्गावती का विवाह हुआ था। यह किला बेहद मजबूत और सुरक्षित था, जिसकी वजह से मुगल शासकों का इसे भेद पाना नामुमकिन था। इस किले की सुरक्षा दो चीजों पर टिकी थी, पहली इसके सामने पहाड़ दीवार बनकर खड़े थे। दूसरी इस किले के खुफियों रास्तों की जानकारी रानी और उनके सैनिकों के अलावा किसी को नहीं थी।
सिंगौरगढ़ किले में एक जलाशय भी स्थित है। इसकी प्राकृतिक सुंदरता हर किसी का मन मोह लेती है। इस जलाशय की खासियत यह है कि इसमें कभी पानी खत्म नहीं होता है। माना जाता है कि इस तालाब में कई रहस्य छिपे हुए हैं। कहा जाता है कि इस रहस्यमयी तालाब में एक बावली बनी है, जहां सोने की मुद्राओं का खजाना छिपा है। इस जलाशय से लोगों ने सोने की मुद्राओं को निकालने के हजारों प्रयास किया लेकिन हर बार उनके हाथ असफलता ही लगी। अब ये बावली भू गर्भ में चली गई है।
कहा जाता है कि जिस किसी ने सोने की मुद्राओं के लालच में यहां खुदाई की, उसके साथ बहुत बुरा हुआ। कई लोग बीमारी से मर गए तो कुछ लोग पागल हो गए। इस वजह से अब कोई इस रहस्यमयी जलाशय से धन निकालने की कोशिश नहीं करता है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, सिंगौरगढ़ जलाशय में स्वर्ण मुद्राओं समेत रानी दुर्गावती का पारस का पत्थर भी डाल दिया गया था।
स्थानीय लोगों के मुताबिक, सिंगौरगढ़ किले से गुप्त सुरंग मदन महल जबलपुर निकलती है। हालांकि, इन सुरंगों को पुरातत्व विभाग ने बंद कर दिया है। यही नहीं, किले की सुरक्षा के लिए 32 किलोमीटर की दीवार बनी गई थी।
जिले के जबेरा से जनपद के सिंगौरगढ़ किला आज भी रानी दुर्गावती की वीरता का गौरवशाली इतिहास लिए मजबूती के साथ खड़ा है। किले की दीवारों को इस मजबूती के साथ बनाया गया था कि इसकी सुरक्षा को भेद पाना मुगल शासकों के बस की बात नहीं थी। क्योंकि प्रकृति प्रदत्त भौगोलिक पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बने किले की सुरक्षा में पहाड़ सुरक्षा दीवार बनकर खड़े थे, तो किले के तह खानों से निकली सुरंग का अंतिम छोर रानी व रानी की सैनिक टुकडिय़ों को ही पता था।
वहीं पहाड़ों पर बने सैनिक टुकड़ियों की तैनाती के तोपखाने सैनिकों के लिए 32 किमी की पैदल चलने की आलोनी दीवार का रास्ता जहां इनकी राज्य की सुरक्षा को सेंध लगाना किसी बाहरी सैन्य शक्ति के लिए नामुमकिन थी।
लेकिन इस किले का संरक्षण करना तक पुरातत्व विभाग भूल गया और धीरे-धीरे सिंगौरगढ़ किला अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई पांच सौ वर्षों से लड़ रहा है।
सिंगौरगढ़ जलाशय की निश्चित दूरी से जलाशय की प्राकृतिक सौंदर्यता देखते ही बनती है। बताया गया है कि तालाब के अंदर ही एक बावली बनी है। जहां पर स्वर्ण मुद्राओं का खजाना छिपे होने की बात कही जाती है। सैकड़ों वर्ष पुराने जलाशय में पानी कभी खत्म नहीं होने की वजह से लाखों प्रयासों के बाद जलाशय के अंदर तक कोई पहुंच नहीं पाया और वावली भू गर्व में चली गई है। मान्यताएं है कि सिंगौरगढ़ तालाब के अथाह जल के अंदर अनेकों रहस्य हैं, लेकिन आज तक इनकी खोज करने की हिम्मत कोई नहीं उठा पाया। जिसने भी जलाशय व किले के अंदर धन के लालच में खुदाई की है उसके कुल का विनाश हो गया है या फिर पागल हो गया है।
स्थानीय लोगों का मानना है कि गौंड़ राजाओं के राजकाज के समय तहखाने गुप्त सुरंग मार्ग सिंगौरगढ़ से सीधे मदन महल जबलपुर को निकलती है। जिन्हें पुरातत्व विभाग के द्वारा बंद कर दिया है। लेकिन इनके अवशेष आज भी मौजूद हैं। वहीं सैनिक टुकडियों के लिए किले की सुरक्षा के लिए 32 किमी दीवार यानी रास्ता आज भी सिंगौरगढ़ किले से पर्वत श्रृंखलाओं तक पूर्णतया सुरक्षित बना हुआ है।
निदान कुण्ड : भैंसाघाट रेस्ट हाऊस से करीब 1/2 कि.मी. दूर भैसा गांव से एक सड़क इस जलप्रपात के लिए जाती है। मुख्य सड़क से 01 कि.मी. से एक जलधारा 100 फिट की ऊचांई से काली चट्टान से नीचे गिरती है। इसे निदान कुण्ड कहते है। जुलाई से अगस्त माह में इस जलप्रपात में पानी बहुतायत से होता है। अतः सामने से इसका नजारा अद्भुत होता है। सितम्बर एंव अक्टूबर माह में नदी में पानी कमी होने के कारण यह एक पिकनिक स्पाट् बन जाता है। यहाँ चट्टानों पर सीढ़ी नुमा आकार बना है। जब जलधारा इनके ऊपर से नीचे गिरती है तो बहुत सुन्दर दृश्य दिखाई देता है।
नजारा भैसां गांव से 03 कि.मी. एक सड़क इस स्पॉट की ओर जाती है जिसे नजारा कहते है। इस जगह को एक ऊॅचे पहाड़ के ऊपर एक प्लेटफार्म की तरह बनाया गया है। जहाँ से नीचे रानी दुर्गावती अभ्यारण का नजारा सांस रोकने वाला होता है। घने जंगलो को यहाँ से निहारा जा सकता है। जंगली जानवरों की गुफाऐं भी यहाँ से देखी जाती है। जंगली जानवर भी यहाँ वहां घूमते नजर आ जाते हैं।
#SINGORGARH
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