रामायण की कहानी - लक्ष्मणजी की तपस्या।
Автор: The Indian Content Factory
Загружено: 2023-10-14
Просмотров: 25
Sacrifice of Lord Lakshman. लक्ष्मणजी व उनकी पत्नी उर्मिला के त्याग की कहानी। #रामायण की #कहानी -#hinduism लक्ष्मणजी की तपस्या। #lakshman #sriram #ayodhya #ramayan #ramayana #india #epic #ramkatha #hanuman #hanumanbhajan #hanumanchalisa #hanumanji #rambhajan #theindiancontentfactory #urmila #laxmanbijuvlog
@theindiancontentfactory
प्रभु श्रीरामजी जब रावण से युद्ध कर अयोध्या वापस लौटे तब उनसे मिलने अगस्तय मुनि अयोध्या पहुंचे। दोनो में लंका में हुए युद्ध के बारें मे चर्चा होने लगी। उस समय प्रभु श्रीरामजी ने बताया कि किस तरह उन्होंने रावण और कुंभकर्ण जैसे वीरों का वध किया और अनुज लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों का वध किया। तभी अगस्तय मुनि बोले, ‘‘हे श्रीराम, रावण और कुंभकर्ण प्रचंड वीर थे; परन्तु सबसे बडा वीर रावण का पुत्र इंद्रजीत ही था। इंद्रजीत ने अंतरिक्ष में हुए युद्ध में इंद्र को बंदी बनाया और उन्हें लंका ले गया। ब्रह्माजी ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा, तब उसने दिए दान के कारण इंद्र मुक्त हुए। लक्ष्मण ने उसका वध किया और केवल वही उसका संहार भी कर सकते थे।’’
अगस्तय मुनिजी से लक्ष्मण की वीरता की प्रशंसा सुनकर श्रीरामजी बहुत प्रसन्न हुए। साथ ही वे अचंभित भी हुए। उन्होंने अगस्तय मुनि जी से पूछा, ‘ऐसा क्या था कि केवल लक्ष्मण ही इंद्रजीत का वध कर सकता था ?’ तब अगस्तय मुनि ने बताया, ‘‘हे प्रभु ! इंद्रजीत को वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था जो चौदह वर्षों तक न सोया हो। जिसने चौदह वर्षों तक किसी स्त्री का मुख नही देखा हो। जिसने चौदह वर्षों तक भोजन न किया हो।’’ प्रभु श्रीरामजी बोले, ‘‘परंतु मुनिवर, मैं वनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल उसे देता रहा। मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था, बगल की कुटी में लक्ष्मण का निवास था, तो सीता का मुख भी न देखा हो और चौदह वर्षों तक सोए न हों, ऐसा कैसे हो सकता है ?’’ प्रभु श्रीराम की सारी बात समझ कर अगस्तय मुनि मुस्कराएँ।
श्रीरामजी स्वंय भगवान थे। उन्हें लक्ष्मण के बारें में सब पता था। परंतु वे चाहते थे कि लक्ष्मण के तप और वीरता के बारें में अयोध्या की प्रजा को भी ज्ञात हो। प्रभु श्रीरामजी के मन की बात जानकर अगस्तय मुनि बोले, ‘‘आपने सही सुना प्रभु, लक्ष्मण के अलावा कोई और इंद्रजीत को नहीं मार सकता था।’’ इंद्रजित के वध के बाद महाराज विभीषण ने भी श्रीराम से कहा था कि रावण के पुत्र इंद्रजीत का वध देवताओं के लिए भी संभव नहीं था। उसे तो केवल लक्ष्मणजी जैसा कोई महायोगी ही मार सकता था।
अगस्तय मुनि ने श्रीरामजी से कहा कि क्यों न लक्ष्मणजी से ही यह बात पूछी जाए। लक्ष्मणजी आए तो श्रीरामजी ने कहा, ‘‘लक्ष्मण, आपसे जो पूछा जाए उसे सच-सच कहिएगा।’’ प्रभु बोले, ‘‘हम तीनों चौदह वर्षों तक साथ रहे फिर तुमने सीता का मुख कैसे नहीं देखा ? तुम्हें खाने के लिए फल दिए गए फिर भी तुम 14 वर्ष बिना भोजन किए कैसे रहे ? और तुम 14 वर्षों तक सोए भी नहीं ? यह कैसे हुआ ?’’ तब लक्ष्मणजी ने बताया, ‘‘भैया, जब हम भाभी को तलाशते ऋष्यमूक पर्वत पर गए, तो सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा था। आपको स्मरण होगा, मैं उनके पैरों के आभूषण के अलावा कोई अन्य आभूषण नहीं पहचान पाया था। क्योंकि मैंने कभी भी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नहीं।’’
चौदह वर्ष नहीं सोने के बारे में लक्ष्मणजी ने बताया, ‘‘आप और माता एक कुटिया में सोते थे। मैं रात भर बाहर धनुष पर बाण चढाए पहरेदारी करता था। निद्रादेवी ने मेरी आंखों पर पहरा करने का प्रयास किया, तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से भेद दिया था। निद्रा ने हारकर स्वीकार किया कि वह चौदह वर्षो तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी। परंतु जब श्रीरामजी का अयोध्या में राज्याभिषेक होगा और मैं उनके पीछे सेवक की तरह छत्र लिए खड़ा रहूंगा तब वह मुझे घेरेंगी। आपको याद होगा राज्याभिषेक के समय नींद के कारण मेरे हाथ से छत्र गिर गया था।’’
लक्ष्मणजी ने आगे बताया कि, जब मैं वन से फल-फूल लाता था तब आप उसके तीन भाग करते थे। एक भाग देकर आप मुझसे कहते थे लक्ष्मण ये फल रख लो। आपने कभी फल खाने को नहीं कहा। तो आपकी आज्ञा के बिना मैं उसे खाता कैसे? मैंने उन्हें संभाल कर रख दिया। सभी फल उसी कुटिया में अभी भी रखे होंगे।’’ प्रभु के आदेश पर लक्ष्मणजी चित्रकूट की कुटिया में से वे सारे फलों की टोकरी लेकर आए और दरबार में रख दी। फलों की गिनती हुई लेकिन 7 दिनों के फल कम थे। तब श्रीरामजी लक्ष्मणजी ने पूछा कि तुमने 7 दिन का आहार लिया था?
तब लक्ष्मणजी ने बताया, ‘‘प्रभु जिस दिन पिताश्री के स्वर्गवासी होने की सूचना मिली, हमने आहार के लिए फल नहीं लाएं। इसके बाद जब रावण ने माता सीता का हरण किया उस दिन भी हमनें आहार नहीं लिया। जिस दिन आप समुद्र की साधना कर उससे राह मांग रहे थे, उस दिन भी हमने आहार नहीं लिया। जब इंद्रजीत के नागपाश में बंधकर हम दिन भर अचेत रहे उस दिन और जिस दिन इंद्रजीत ने मायावी सीता का सिर काटा था उस दिन हमने शोक के कारण आहार नहीं लिया। इसके अलावा जिस दिन रावण ने मुझ पर शक्ति से प्रहार किया और जिस दिन आपने रावण का वध किया, यह दोनों दिन भी हमनें आहार नहीं लिया। इन 7 दिनों में हम निराहारी रहे। इस कारण 7 दिनों का आहार कम है।’’
लक्ष्मणजी ने भगवान श्रीराम से कहा, ‘मैंने गुरु विश्वामित्र से एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था। इससे बिना अन्न ग्रहण किए भी व्यक्ति जीवित रह सकता है। उसी विद्या से मैंने भी अपनी भूख नियंत्रित की और इंद्रजीत मारा गया।’’ लक्ष्मणजी की 14 वर्षों की इस तपस्या के बारे में और उनकी भक्ति के बारें में सुनकर प्रभु श्रीराम भाव-विभोर हो उठे और उन्होंने लक्ष्मणजी को गले से लगा लिया।
Доступные форматы для скачивания:
Скачать видео mp4
-
Информация по загрузке: