ढोल सागर के जानकार का यूं चले जाना || ढोक वादक जगती राम की मार्मिक व्यथा || Himalaya Lovers
Автор: Himalaya Lovers
Загружено: 2020-07-19
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खमोश ही जगती राम के ढोल की थाप....
ढोल वादक जगती राम अब हमारे बीच नहीं रहे। जगती राम (जगती लाल) ३३ कोटि देवी-देवताओं के ८४ ताल के जानकार थे। चमोली जिले की कड़ाकोट, सिरगुर और बधाण पट्टी में उनका नाम था। जगती राम ने 83 वर्ष की आयु में 17 जुलाई 2020 को कर्णप्रयाग हॉस्पिटल में आखिरी सांस ली।
जगती राम चमोली जिले के नारायणबगड़ ब्लॉक के ज्यूड़ा (मींग गदेरा) ग्राम निवासी थे। पिंडरघाटी के प्रसिद्ध चोपता कौथिग में हर बार शिरकत करते थे, मां गिरिजा भवानी पर उनकी बड़ी आस्था थी। लोक कला ढोल सागर के माहिर ढोल कलाकार आज हमारे बीच नहीं रहे। अब कीड़ी माकुरी, जीव-जंतु, देवी-देवता उनकी ढोल की हुंकार और कंठ की वाणी सुनने को तरस जाएंगे।
क्योंकि ढोल की थाप पर मनुष्य के तो पैर थिरकते ही हैं, किन्तु कहते हैं कि परलोक के वासी भी थिरकने को मजबूर हो जाते हैं। जगती राम की श्रेष्ठता और उनका ज्ञान सालों तक याद किया जाएगा लेकिन उनकी जगह शायद की कोई ले पाए। कहते हैं कि एक थाप पर अनेकों लोग देव रूप धारण कर लेते हैं और एक गलत थाप पर न जाने कौन सी आपदा आ पड़े कोई नहीं जानता। ढोल बजाने की कई विधियां हैं, कई ताल हैं। इस पर पूरा ढोल सागर लिखा गया है। जगत राम इस विधा को बड़ी गहराई से जानते थे, वे बाल अवस्था से ही बतौर दास भगवान की भक्ति करते आ रहे थे
ढोल सुख, दु:ख और पूजा सभी कार्यों में बजता है। उतराई, चढाई, स्वागत प्रस्थान, आरंभ और समापन सभी के लिए अलग-अलग ताल हैं। इन्हें बजाने वालों को दास, औजी, बाजगी, ढोली नाम जो भी कहें, लेकिन आज भी यह कलावंत उपेक्षित हैं। जरूरत है ढोल को बजानेवालों को पेशेवर रूप मान्यता देने की। इन्हें सम्मान और पैसा मिल जाए तो लोककला की सुंदरता बरकरार रहेगी। हिमालयी क्षेत्रों में ढोल वादन की बहुत पुरानी और समृद्ध परंपरा रही है लेकिन समय के साथ ढोल शास्त्र और इसे बजानेवाले कलाकार हाशिये पर जाने लगे। आज इस परम्परा से जुड़े लोग, इस लोक कला से विमुख होते चले गए। आज जरूरत है इन कलावंतों को प्रोत्साहित करने की, उन्हें सम्मान और आर्थिक सहायता देने की, ताकि नई पीढ़ी हंस-खुशी इस विधा को अपनाए और इस परंपरा को आगे बढ़ाए
याद रहे, अगर ढोली रहेगा तो ढोल भी रहेगा....
Thank you so much
Team Himalaya Lovers
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