Bhairavi Vallabh Ashtak | Shri Dhananjay Tiwari
Автор: K M Devotional Records
Загружено: 2024-10-14
Просмотров: 53064
Song - Bhairavi vallabh ashtak
Lyrics - Shri Dhananjay Tiwari
Music Production - Vidhan Gangwal
Recorded at - AMP studios (Indore)
Video Credits - Director: Sadashiv
Instagram: / hellosadaa
Post Production, Video Edit & Poster edit by: Creative India Productions
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Shri Dhananjay Tiwari
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Bhairavi Vallabhashtakam
Published by Creative India Pro. & Shiv Parashar / Sadashiv Sharma
Copyright © 2016 by Sadashiv a.k.a Sadashiv Sharma
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भैरवी वल्लभ अष्टक
नमो भूतनाथं नमो प्रेतनाथम
नमः कालकालं नमो रुद्रमालम
नमः कालिकाप्रेमोलोलम करालम्
भजे भैरवीवल्लभम भैरवेन्द्रम॥ १॥
मै भूतनाथ को प्रणाम करता हूँ । मैं प्रेतनाथ को नमन करता हूँ । मैं कालो के काल को प्रणाम करता हूँ । मै रुद्रदेव को नमन करता हूँ । मै नमन करता हूँ उन्हें जो काली के प्रेम व कृपा पात्र है । भैरवो मे इंद्र भैरवी के प्राण वल्लभ भगवान कपाल भैरव का मै भजन करता हूँ ।
सदाशूलहस्तं सदा खड़गचालम
सदा तंत्रसिद्धम् सदा शुभ्रभस्मम् ।
सदा ध्यानयुक्तं सदा ज्ञानयुक्तम्
भजे भैरवीवल्लभम भैरवेन्द्रम ॥ २॥
वो सदा शूल व तीक्ष्ण खड्ग धारण करते है । तंत्र की सिद्धिया प्रदान करते है तथा उज्ज्वल श्वेत भस्म को धारण करते है । सदा ध्यान एवं ज्ञान से युक्त रहते है । भैरवो मे इंद्र भैरवी के प्राण वल्लभ भगवान कपाल भैरव का मै भजन करता हूँ ।
शिवा रक्षकाराम महाकाशी वासं
शरीरम सुशोभम विमुक्तम् त्रिपुंडम
पिशाचादिनाथं पशूनां प्रतिष्ठं
भजे भैरवीवल्लभम भैरवेन्द्रम ॥ ३॥
जो माता भवानी के रक्षक है तथा महान काशी नगरी जिनका निवास है । जिनके शरीर पर खुले हुए त्रिपुण्ड शोभायमान रहते है । जो पिशाचादी गणों के नायक तथा पशुपति है । भैरवो मे इंद्र भैरवी के प्राण वल्लभ भगवान कपाल भैरव का मै भजन करता हूँ ।
फणीनागकण्ठे भुजङ्गाद्यनेकं
गले रुण्डमालं महावीर धीरम।
कटिव्याघ्रचर्मं चिताभस्मलेपं
भजे भैरवीवल्लभम भैरवेन्द्रम॥ ४॥
जिनके कंठ और सभी अंगो मे अनेको सर्प लिपटे रहते है । जो गले मे रुण्ड माला धारण करते है । जो महावीर एवं धैर्यवान है । जिनकी कमर पर व्याघ्रचर्म है । जो चिताभस्म का लेपन करते है । भैरवो मे इंद्र भैरवी के प्राण वल्लभ भगवान कपाल भैरव का मै भजन करता हूँ ।
परम् शांतिदायम सुसिद्धि प्रदायम
महाकालरूपम योगिन्यादी भूषण
गजारूढ़ देवम् त्रिकालम् सुदर्शन
भजे भैरवीवल्लभम भैरवेन्द्रम ॥ ५॥
जो अपने भक्त को परम शांति एवं शुभ सिद्धिया प्रदान करते है । जो महाकाल के स्वरूप है तथा योगिनियो संग सुशोभित रहते है । जो गज पर आसीन होते है । जो तीनो कालो में अपना दिव्य दर्शन प्रदान करते है । भैरवो मे इंद्र भैरवी के प्राण वल्लभ भगवान कपाल भैरव का मै भजन करता हूँ
करे शूलधारं महाकष्टनाशं
स्वभक्तादिचित्तम सदा वासमानम
महाब्रह्ममानम् महारुद्ररुपम्
भजे भैरवीवल्लभम भैरवेन्द्रम ॥ ६॥
जो अपने हाथो मे धारण किए हुए त्रिशूल से महान कष्टो का नाश करते है । जो अपने भक्त के चित्त मे सदा वास करते है । जो महाब्रह्म के समान रचना और महारुद्र के समान संघार करते है । भैरवो मे इंद्र भैरवी के प्राण वल्लभ भगवान कपाल भैरव का मै भजन करता हूँ
रोषम विदारम परमपुण्य कारम
कपालम निवासम सदा भावशुद्धाम
गणाधीश ईशम पुरा विश्व ईशम
भजे भैरवीवल्लभम भैरवेन्द्रम ॥ ७॥
जो रोष को विदीर्ण करते है तथा पुण्यो के परम कारक है । को भक्त के कपाल मे निवास करके उसे भावशुद्ध करते है । जो सभी गणो के प्रधान तथा समस्त जगत के ईश्वर है । भैरवो मे इंद्र भैरवी के प्राण वल्लभ भगवान कपाल भैरव का मै भजन करता हूँ
मुनिवृंद सेव्यम् पुराणस्य पुरुषम
सदा ध्यानलीनम प्रभायुक्त देवम
धरम पाप पाश्म महा अट्टहासम्
भजे भैरवीवल्लभम भैरवेन्द्रम ॥ ८॥
ऋषि मुनियो का समूह सदा जिनकी सेवा करता है । जो पुराण पुरुष है । सदा ध्यान में लीन रहते है । जिनका तेज अद्वितीय है । जो अपने पाश मे महापापो को अट्टहास करते हुए बाँधे रखते है । भैरवो मे इंद्र भैरवी के प्राण वल्लभ भगवान कपाल भैरव का मै भजन करता हूँ
सदा भावनाथं सदा सेव्यमानं
सदा भक्तिदेवं सदा पूज्यमानम् ।
महातीर्थवासं सदा सेव्यमेकं
भजे भैरवीवल्लभम भैरवेन्द्रम ॥ ९॥
जो भावो के स्वामी है तथा सदा सेवा करने योग्य है । जो भक्ति प्रदान करते है तथा सदा पूजा करने योग्य है । जो सभी महान तीर्थो मे निरंतर अपने इष्ट की सेवा करते है । भैरवो मे इंद्र भैरवी के प्राण वल्लभ भगवान कपाल भैरव का मै भजन करता हूँ
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