धर्म और मोह का संघर्ष | अर्जुन की मानसिक व्यथा | भगवद गीता श्लोक 31| bhagwat gita shlok saar
Автор: GYAN SANGRAH
Загружено: 2025-12-16
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धर्म और मोह का संघर्ष | अर्जुन की मानसिक व्यथा | भगवद गीता श्लोक 31| bhagwat gita shlok saar
🕉️ Description (विवरण):
भगवद गीता के प्रथम अध्याय का 31वाँ श्लोक अर्जुन की गहरी मानसिक व्यथा को दर्शाता है।
जब अर्जुन का मन धर्म और मोह के संघर्ष में फँस जाता है, तब उसे चारों ओर केवल अशुभ संकेत, अंधकार और नकारात्मकता ही दिखाई देती है।
यह श्लोक हमें सिखाता है कि जब विवेक ढक जाता है, तब सही और गलत का भेद स्पष्ट नहीं रह जाता।
यहीं से श्रीकृष्ण के दिव्य उपदेश की आवश्यकता और भी स्पष्ट हो जाती है।
📖 श्लोक:
“न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः…”
👉 इस वीडियो में श्लोक का भावार्थ, सार और जीवन के लिए संदेश सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
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