#Kinnaur
Автор: Inder Mohan Negi
Загружено: 2025-02-10
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माघ मेला, किन्नौर ठंगी का एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक मेला है. यह मेला हर साल जनवरी या फ़रवरी महिना में आयोजित और मनाया जाता है।
आइए इस पवित्र अवसर पर शामिल हो और माघ मेला अनुभव करें। देवता रापुक शंकर जी के आशीर्वाद से यह मेला आपनी परंपराओं, भाइचारे और खुशी से मेला करने की अवसर देता है.
टिडोङ वैली के मध्य में बसने वाला ग्राम ठंगी का ऐतिहासिक माघ मैला आज कल पुरे हर्षो उल्लास के साथ मनाया जा रहा है । सर्व प्रथम देवता रापुक शंकर जी का किल्ला(प्रा) से सत्तू और फाफरे का प्या बना कर देवता जी के पुजारी एवं कामदार सूर्य देव के अस्त होते ही सुनिकतेन नामक स्थान पर ले जाकर पूजा किया जाता है । रात को शु पानठाङ जो पुजारी के घर स्थित है समस्त ग्राम वासी इकट्ठे होकर बहुत ही मार्मिक कार गीत जो एक पेड पर आधारित है गाया जाता है । इसका पूरा वर्णन करना इसमें सम्भव नहीं ।पहले दिन रात 11:30 बजे सुनसान रात्रि में देवता जी के पुजारी उनके सहयोगी देवता जी के माली पुजारी जी के घर से देवता जी के किल्ला (प्रा) में आते हैं । और कोई अप्रिय आवाज़ जो आकस्मिक सुनाई देता है ग्राम वसियों को सुनाते हैं । दूसरे दिन सुबह समस्त ग्राम वासी कोराङ लेकर सनताङ परिसर में आते हैं । और सौरे (18) चिनाङ बजाकर देवता जी को इंद्र लोक से आहवान करते हैं ।और शाम को देवता जी को पूरी तरह सजाकर माघ सानताङ ले जाया जाता है इसे सानताङ छुकशीम कहते हैं । लम्बर से देवी कुम्फीङ राकशु और सापाकतेन से किमशु का देवता जी से मुलाकात होता है ।
तीसरे और चौथा दिन ओमया एवं ञुमया कुशीम मैला होता है । इसका मतलब अपने अपने मनरीङस को भोज पर बुलाया जाता है । और इकट्ठे होकर जाते हैं और मास एवं अन्य व्यंजनों का पूरा आनन्द लेते हैं । अब यह खत्म हो रहा है इस जगह मर्द एक दूसरे के घर इकट्ठा हो कर जाते है और मदिरा मास एवं अन्य पकवान का आनन्द लेते हैं ।
पाँचवें दिन रूम पजाम यानी जितने भी फलदार पेड हैं उनका फल यानी (रूम को) देवता जी के चरणो में रखा जाता है और आने वाले वर्ष में साल में अच्छा फसल हो उसकी कामना करते पूजा अर्चना किया जाता है और महिलाएँ अपने खूब सूरत वेष भूषा में धूप लेकर जब सानताङ में आते है और देवता जी को धूप देते अत्यन्त मनमोहक दृश्य का नज़ारा होता है । छठा दिन सबसे बडा पर्व सावने कायाङ होता है ।सर्व प्रथम वर्ष में जितने भी पहला बच्चा होता है उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना कर हलुआ एवं होद (पोच) का पूजा किया जाता है । देवता जी के शु माथास द्वारा तीन गुर तै शु च़ोङरी लगाकर इसका आग़ाज़ किया जाता है । इसके बाद तीन गुर खान्डो कायाङ लगाते है इसके बीच देवता रापुक शंकर जी के पुजारी जी उनके सहयोगी तीनो माली सावने थानाङ से पूजा पाठ कर आसते आसते सानताङ में प्रवेश करते हैं तीनो मालियों को जगाया जाता है और ग्राम वसियों को माली द्वारा अपना आदेश सुनाया जाता है । पुजारी द्वारा तीन गुर कार कायाङ लगाया जाता है सावने कायाङ का अपना विशेष महत्व है । हमारे चारों दिशाओं में सावने का वास है ।
पिगला सावने, परपो सावने, सावन सेसर, बारह सावने इनका विधिवत पूजा किया जाता है इसके बाद ऊ कायाङ एवं दाङ कायाङ यह तीनो दिन महिलाएँ खुब सुरत पारम्परिक वेष भूषा में एसे लगते हैं जैसे इंद्र लोक से पारियाँ साक्षात धरती पर अवतरित हो गया हो और मर्द सफेद छुआ खुब सुरत गलवन्द ऊनी पजामा सिर पर फुल वाला टोपी मर्द का असली ज़ेवर मदिरा पान करके अति शोभायमान लगता है । हमारे पूर्वजों ने जो सांस्कृतिक धरोहर हमें विरासत में दिया है । माघ मैले के दोरान 8 दिनों तक हमारे गाँव के मध्य ज़ोमखाङ में बोद्ध भिक्षुओं एवं भिक्षुणियों द्वारा युम पोथी काङग्युर जैसे महान ग्रन्थों का पाठ कर गाँव में सुख समृद्धि की कामना करते है ।इसके अनुरूप सब मिलकर आठ दिनों तक यह खुब सुरत मेला लगता है और सब इसका आनन्द लेते है परम पूज्यनीय देवता रापुक शंकर जी भी प्रसन्न चीत हो कर अपना शुभ आशीर्वाद प्रदान करते है ।
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