अथ श्री शिवाष्टकम् || Made by Arth`700 ||
Автор: Arth`700
Загружено: 2025-07-21
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॥ अथ श्री शिवाष्टक स्तोत्रम् ॥
॥ ॐ नमः शिवायः ॥
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं , विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं , चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं , गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं , गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं , मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् । स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा , लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा ॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं , प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् । मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं , प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं , अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् । त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं , भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी , सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी । चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी , प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं , भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं , प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा , न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् । जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं , प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥
रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति । ।
॥ इति श्री रूद्राष्टकम सम्पूर्णम् ॥
॥श्री सांब सदाशिवाय अर्पणम् अस्तु॥
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