“मुझे जानबूझकर नहीं बुलाया गया… फिर वकील ने मेरा नाम पढ़ दिया”
Загружено: 2025-12-24
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उन्होंने मुझे जानबूझकर परिवार की बैठक में नहीं बुलाया।
कहा गया— “सब कुछ पहले ही बाँट दिया गया है।”
मैं चुप रही।
क्योंकि मैं जानती थी, सच्चाई अक्सर आख़िरी काग़ज़ में छुपी होती है।
जब वकील ने वसीयत पढ़नी शुरू की,
तो एक-एक करके चेहरे बदलने लगे।
और जब मेरा नाम आया—
कमरे में ऐसी ख़ामोशी छा गई,
जिसमें सालों की नफ़रत, लालच और झूठ दब गया।
यह कहानी सिर्फ़ संपत्ति की नहीं है।
यह उस इंसान की है जिसे परिवार ने अलग कर दिया,
जिसे जानबूझकर भुला दिया गया—
लेकिन आख़िर में सच्चाई ने सबको आईना दिखा दिया।
इस कहानी में आप देखेंगे:
परिवार में होने वाला लालच और भेदभाव
रिश्तों के पीछे छुपी सच्चाई
और यह सीख कि
इज़्ज़त माँगी नहीं जाती—कमाई जाती है
अगर आप भी मानते हैं कि
खून का रिश्ता हमेशा न्याय की गारंटी नहीं होता,
तो यह कहानी आपको अंत तक बाँधे रखेगी।
👇 कमेंट में बताइए
अगर आप मेरी जगह होते, तो क्या करते?
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