Keechak Ka Vairagya | कीचक का वैराग्य | वीतरागी महाभारत | चिदायतन पंचकल्याणक भजन
Автор: Teerthdham Chidayatan, Hastinapur
Загружено: 2025-06-24
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ऐतिहासिक अतिशयकारी पौराणिक तीर्थक्षेत्र हस्तिनापुर की पुण्य धरा पर श्री शान्तिनाथ-अकम्पन-कहान- दिगम्बर जैन ट्रस्ट, हस्तिनापुर द्वारा तीर्थधाम चिदायतन में श्री 1008 शान्तिनाथ दिगम्बर जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महा-महोत्सव |
आइए, इस भव्य पंचकल्याणक महोत्सव में प्रस्तुत भजनों का आनंद लें |
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रह रहे पाण्डव वेश बदल, अहो कर्मोदय महा प्रबल ।
नाम सब अलग-२ धर भ्रमें, दोपदी को शैलंध्री कहें।।
देखो कैसे कर्मों के चित्र, होय संयोग वियोग विचित्र
स्वर्णमहलों में जिनका वास, वही छुपकर के करें निवास
रानी बन जो महलों में बसे आज सामान्य नारीसम रहें।
द्रौपदी घूमें जब उद्यान, लग रही स्वर्ग की देवी समान
शील की मूरत थी वह सती, ज्ञान वैराग्य मयी परिणति
देह सौदर्य नहीं उन्हें सुभाय, आत्म सौंदर्य ही उन्हें सुहाए ।।
द्रौपदी का था रूप अनूप, देख कर मुग्ध हुआ इक भूप ।
नाम कीचक था सुध बुध खोय, अब उसे अन्य न दीखे कोय ।।
द्रौपदी के पथ पर ही जायें, भ्रमर जैसे ही नित मंडरायें।
हस्त से जो करती थी स्पर्श, उठा लेता वो उसे सहर्ष ।।
चले जिस पथ पर वो नारी, धूल भी लगती है प्यारी।
काम का वेग है यूं छाया, पराई नार पे ललचाया।।
जहाँ जिसकी जैसी रुची जाये, वहाँ वैसा ही उसे सुहाये।
पापी को पाप, कामी को काम, ज्ञानी को ज्ञान ही है मन भाय
एक दिन पाकर के एकांत, हाथ द्रोपदी का पकड़ा तुरंत ।
छुड़ाकर भागी वह तत्काल, भीम के निकट कहा सब हाल ।।
काँपती हुई द्रोपदी देख, योजना कही भीम ने एक
कहा कुछ ऐसी बात बनाओ, नाट्यशाला में उसे बुलाओ।।
द्रौपदी बोली प्रेम वचन, दिया कीचक को आमंत्रण ।
कामवश ऐसा बौराया, दौड़कर नटशाला आया ।
खड़ी द्रौपदी थी मुख को मोड़, गया वह पापी उस ही ओर।
हाथ जब पकड़ा वह था सख्त, भीम था वेश बदल उस वक्त ॥
किया छाती पर तुरत प्रहार, पड़ी कीचक को भयंकर मार।
भीम बोले करके बेहाल, चले जा पापी तू तत्काल ।।
दर्द से कीचक रहा कराह, किंतु अंतर में उठे विचार ।
अरे क्षत्रिय हूँ फिर भी पिटा, कामवश होती है दुर्दशा ।।
अरे मतवाला हो मैं फिरा, किंतु कुछ भी सुख मुझे न मिला।
नहीं इस हेतु ये नरतन पाय, व्यर्थ विषयों में यूं ही गंवाय ॥
वेदना नहिं है यह भारी, पर में सुख बुद्धि दुखकारी।
अरे बाहर का क्या छोड़ूं, अब तो अज्ञान से मुख मोडूं।
आज जो नारी मुझको भाय, पूर्व की बहन सुता या माय।
अरे दुख रूप वासना आग,करूंगा मैं इसका परित्याग ॥
कल्पनामात्र रम्य हैं भोग, अरे भीतर से भीषण रोग ।
आज तो है ही दुख का कूप, अनागत में भी गरल स्वरूप
अरे भव भव में दुख का मूल, काम का ऐसा तीखा शूल ।
रहा मैं निजस्वभाव को भूल, काम का नाशे जो जड़मूल।।
अहो अद्भुत मेरा सौंदर्य, नहीं किंचित विकार की गंध ।
यहां सब दोष दुःख मिट जाये, निज रमणता का फल सुखदाय ॥
करूं मैं अब ऐसा कुछ काम, रहे नहीं लेश दुःख का नाम
करूं अब निज स्वभाव का ध्यान, पाऊंगा भव भव से विश्राम ।।
कर रहा कीचक सतत विचार, उमड़ता है वैराग्य अपार
भोग का यह प्रपंच दुखकार, धरूंगा जिनदीक्षा सुखकार ॥
दिगंबर वेश धरा तत्काल, चल पड़े मुक्ति महल के द्वार।
चित्त निज में रमता जा रहा, आत्म सुख भी बढ़ता जा रहा।
अरे सिद्धालय में जा बसे, न कुछ भी दुख अब शेष रहे
लखे नहिं औदायिक परिणाम, पारिणामिक में ही विश्राम ।
चले यदि जिनवर के ही पंथ, पापी भी बन जाता भगवंत।
अहो कीचक प्रभु को हम नमें, उन्ही सम हम भी प्रभुवर बनें।
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Lyrics : Gyata Jain, Seoni
Singer: Priya Bhagat, Naman Mahajan & Keyur Bhagat
Music Composer & Arrangement: Keyur Bhagat.
Recording studio & Mix master : S2M Studio
Creative director- Mihir Trivedi, Pritesh Sodha
Music Production - K Square Events and Entertainments, Utopia Communication
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Teerthdham Chidayatan
Shri Shantinath-Akampan-Kahan Digamber Jain Trust “Vimlanchal”, Harinagar, Aligarh – 202001 (Uttar Pradesh) India.
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