शास्त्रों में किस प्रकार के अभिमान की प्रशंसा है?अवश्य सुनें
Автор: Pt Premkrishna Tiwari
Загружено: 2025-11-12
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शास्त्रों में अभिमान करने की भी प्रशंसा की गई है,रामचरित मानस में कहा गया है
अस अभिमान जाई जनि भोरे मैं सेवक रघुपति मोरे
यही अभिमान लक्ष्मण जी को भी था इसी अभिमान पर उन्होनें कहा कि
तोरऊं छत्रक दण्ड जिमि तव प्रताप बल नाथ
जो न करहुँ प्रभु पद सपथ पुनि न धरउँ धनु हाथ
लक्ष्मण जी अभिमान तो अवश्य कर रहे हैं पर प्रभु के बल का।
यही बात भगवान कालिया नाग से कहते हैं कि कालिया नाग अब तुम्मे मेरे चरणों की मुहर लग गई है।
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