December 19, 2025
Автор: SMMCT-Santmat Satsang Kolkata
Загружено: 2025-12-19
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यह विशेष सत्संग पूज्य रबीन्द्रनाथ बाबा (Rabindranath Baba) के द्वारा दिया गया है, जिसमें गुरु भक्ति और दुर्लभ मानव जीवन के सदुपयोग पर प्रकाश डाला गया है।
बाबा जी ने गोस्वामी तुलसीदास जी, प्रहलाद जी, और महर्षि संत सेवी परमहंस जी महाराज के वचनों को उद्धृत करते हुए समझाया है कि:
मानव शरीर की महत्ता: मनुष्य का शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है ("बड़े भाग्य मानुष तन पावा सुर दुर्लभ सद ग्रंथ है गावा" [05:02]) और यह 84 लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ है ("नरतन सम नहीं कब देह" [05:54])। इसका एकमात्र उद्देश्य तप और पुण्य अर्जित करना है।
बंधन और मुक्ति: 'मम' या 'मेरा' की भावना ही बंधन है। साधक को मन से यह त्यागना चाहिए कि यह शरीर और संसार की वस्तुएँ मेरी हैं, क्योंकि यह शरीर भी किसी और का दिया हुआ है, जिसे वह कभी भी वापस ले लेगा ("मैं नहीं मेरा नहीं यह तन किसी का है दिया छीन लेगा कब इसे इसका पता हमको नहीं" [08:54])।
सद्गुरु ही आधार: संसार में वही प्राणी 'वरभागी' (सौभाग्यशाली) है जो अपने गुरु के चरणों में समर्पित है ("जे गुरु पद अंब अनुरागी ते नर लोकहु वेदहु वरगी" [14:03])। बाबा जी ने गुरुदेव को साक्षात् शिव स्वरूप ("सतगुरु शंकर रूप" [14:25]) बताया और एक कथा के माध्यम से उनकी महिमा का वर्णन किया।कर्मों का फल: व्यक्ति के संग केवल उसके द्वारा अर्जित पुण्य और पाप ही चलते हैं, जो यहाँ से लेकर परलोक तक की व्यवस्था सुनिश्चित करते हैं [10:01]।
जीवन में भजन, ध्यान, और सत्संग के महत्व को समझने के लिए यह प्रवचन अवश्य सुनें।#रबीन्द्रनाथबाबा #RabindranathBaba #SantmatSatsang #संतमत #Santmat #गुरुमहिमा #GuruMahima #गुरुभक्ति #GuruBhakti #मोक्ष #Salvation #मानवजीवन #HumanLife #सत्संग #SpiritualDiscourse #भजन #Sadhana #महर्षिसंतसेवी #MaharishiSantsevi
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