गुरुदेव सियाग की दिव्य लेखनी के तीन संकलित लेख
Автор: Guru Siyag Divine
Загружено: 2025-09-19
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पहला लेख
विश्व में धार्मिकता
आज विश्व के धार्मिक जगत् में जितना अंधकार है, पहले कभी देखने में नहीं आया । मुस्लिम और ईसाई धर्म के प्रभाव के कारण भारत में भी घोर अंधकार है ।संसार भर के सभी धर्म, जो अहिंसा में विश्वास रखते हैं, बहुत ही दयनीय स्थिति में हैं । लगभग सम्पूर्ण विश्व में हिंसा में विश्वास रखने वाले धर्मों का एक छत्र साम्राज्य है । 'अहिंसापरमोधर्मः' के सिद्धान्त में विश्वास रखने वाला भारत, धार्मिक दृष्टि से लगभग प्रभावहीन हो चुका है । जब तक भारतीय धर्म अर्थात् 'हिन्दू दर्शन' का पुनरोत्थान नहीं होगा, विश्व शांति मात्र मृगमरिचिका ही रहेगा । आणविक अस्त्रों का भय दिखाकर कभी शांति स्थापित नहीं हो सकेगी । भय मिश्रित शांति का अन्त बहुत ही बुरा होगा ।
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दूसरा लेख
अवतारवाद
(23 जनवरी 1998)
हिन्दू दर्शन के अनुसार दसवें अवतार के अन्तर्ध्यान होने के साथ ही एक नया सत्य युग प्रारम्भ हो जावेगा, जो कलियुग की देन होगा । इस प्रकार 25 दिसम्बर 1997 को नवें अवतार ने दसवें अवतार को सत्ता का पूर्ण हस्तान्तरण कर दिया था । अगर हिन्दू दर्शन का अवतारवाद का सिद्धांत सत्य है तो भारत निकट भविष्य में धार्मिक क्षेत्र में विश्वगुरु का पद प्राप्त कर लेगा ।
अवतारवाद के सिद्धांत को ध्यान में रखकर आज तक अनेक लोग स्वयं को दसवाँ अवतार घोषित कर चुके हैं । उनमें से कई इस विश्व से अन्तर्ध्यान भी हो चुके हैं, परन्तु युग परिवर्तन जैसी स्थिति तो अभी तक अनुभव में नहीं आई है ।
पूर्ण सत्य अभी तक भविष्य के गर्भ में छिपा है । परन्तु लगता ऐसा है कि कोई आश्चर्यजनक घटना घटने वाली है । वह कैसे घटेगी और कब घटेगी, इसका सही-सही अन्दाज अभी तक नहीं लग सका है ।
मेरी प्रत्यक्षानुभूतियों के अनुसार भी सन् 2000 के अन्त से पहले-पहले भारतीय दर्शन का प्रसार सम्पूर्ण विश्व में हो जावेगा । क्योंकि वेदान्ती 'अहिंसापरमोधर्मः' के सिद्धांत में विश्वास रखते हैं, अतः इस दर्शन का विस्तार भी सम्पूर्ण विश्व में, अहिंसक विधि से ही होगा ।
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तीसरा लेख
आध्यात्मिक जीवन का मतलब भौतिक संसार से विरक्ति नहीं
(25 फरवरी 1988)
इस युग में आध्यात्मिक जीवन की व्याख्या बड़े विचित्र ढंग से की गई है । इन मन घड़न्त और कृत्रिम जीवन मान्यताओं के कारण ही इस युग का मानव अध्यात्मवाद को निर्थक और कोरा ढोंग मानता है । यही कारण है कि इस युग में धर्म का अधिक हास हुआ है । किसी भी कार्य के करने से उसका ठोस परिणाम निकलना चाहिए । परन्तु इस युग में आराधना का जो निर्जीव स्वरूप बचा है, वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी रूप में कोई परिणाम नहीं देता है । हमें केवल काल्पनिक रूप से कोरा विश्वास करने की आज्ञा दी जाती है ।
हमारे सभी संतों ने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा है कि 'धर्म' प्रत्यक्षानुभूति और साक्षात्कार का विषय है । केवल विश्वास का नाम धर्म नहीं है । जीवन के हर कार्य में ईश्वरीय शक्ति काम करती है । ऐसा कोई कार्य नहीं है, जिसमें ईश्वरीय शक्ति काम न करती हो । धर्म का संबंध बाहरी प्रदर्शनों से बिलकुल नहीं है । कोरे कर्मकाण्ड, शब्दजाल और तर्क शास्त्र से उस परमसत्ता से कभी भी साक्षात्कार संभव नहीं । इस युग में निर्जीव वस्तुओं से सजीव प्राणी को उस परम चेतन सत्ता से जोड़ने का निरर्थक प्रयास करवाया जा रहा है । त्याग, बैराग्य, तप, दान, धर्म, ज्ञान, पाप, पुण्य आदि के काल्पनिक चित्र दिखाकर मानव को गुमराह और भ्रमित करने के अलावा, आज कुछ भी नहीं हो रहा है । ऐसी स्थिति में मानव का धर्म से विद्रोही होना न्याय संगत है । इस युग का मानव, अब अंधेरे में भटकने को तैयार नहीं है ।
भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में जो उपदेश दिया और उससे अर्जुन को जो ज्ञान मिला, वही सच्चा ज्ञान है । अर्जुन ने उपदेश के बाद जो कार्य किया, जो रास्ता अपनाया, वही सही मार्ग है । भौतिक विज्ञान, आध्यात्मिक शक्ति की देन है । अतः विज्ञान और अध्यात्म में भेद करना भूल है । जिस समय आध्यात्मिक शक्ति का सही ज्ञान भौतिक विज्ञान के वैज्ञानिकों को हो जाएगा, तत्काल समस्या का समाधान हो जाएगा । जब वैज्ञानिकों को उस परमसत्ता की शक्ति का ज्ञान हो जाएगा तो उनका भ्रम खत्म हो जाएगा । जब इस प्रकार भौतिक विज्ञान, अध्यात्म विज्ञान के अधीन कार्य करने लगेगा, पृथ्वी पर स्वर्ग उत्तर आएगा ।
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