श्री जयशंकर प्रसाद कृत बीती विभावरी जाग री / सप्रसंग व्याख्या/ biti vibhavari jaag ri kavita vyakhya
Автор: Asstt .Prof. Poonam Dhamija Chugh
Загружено: 2020-10-13
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'बीती विभावरी जाग री' कविता प्रसाद जी की "लहर "नामक काव्य रचना से अवतरित एक प्रसिद्ध गीत है ।इसमें कवि ने प्रातः कालीन सुंदरता का मार्मिक चित्रण किया है। प्रसाद जी छायावादी प्रवृत्तियों का प्रयोग करते हुए इस जागरण गीत में प्रकृति का उद्दीपन रूप में सुंदर चित्रण कर रहे हैं ।प्रसाद जी भारत वासियों को आह्वान करते हुए कह रहे हैं कि पराधीनता रूपी रात्रि समाप्त हो गई है । स्वतंत्रता की लहर चारों ओर फैल रही है अतः हे भारतवासियों उठो जागो सवेरा हो चुका है।
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