Nandprabha Jinalay Rujuvalika - Pratishtha Amantran - Voice Harsh Bhimani
Автор: Nandprabha Palitana Official
Загружено: 2023-11-03
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।।।।।।।।।।।।।।लेखन : देवर्धि।।।।।।।।।।।।।
हमारे भारत देश में २४ तीर्थंकर भगवंतों के पांच पांच कल्याणक संपन्न हुएं हैं . प्रत्येक कल्याणक की भूमि पर कल्याणक तीर्थ बना है जिस के कण कण में तीर्थंकर भगवंत के साक्षात् स्पर्श की अनंत ऊर्जा का निवास है . भारत देश के झारखंड राज्य में गिरिडीह शहर से सोलह किलोमीटर दूर , पुण्य सलिला बराकर नदी बहती है .
इस नदी पर एक पूल है , बराकर गांव के समीप में . इस पुलिया के उत्तरी छोर पर , हमें देखने मिलता है एक वंदनीय पूजनीय जैन महातीर्थ . यह ही है हमारा श्री ऋजुवालिका जैैन तीर्थ . अंदाजन २६०० साल पूर्व , परम पावनी बराकर नदी का नाम था ऋजु वालिका नदी . और नदी के समीप वर्ती गांव का नाम था जृंभक ग्राम . विश्व वंदनीय श्री महावीर स्वामी भगवान् , अपने साधना काल के तेरहवें वर्ष में यहां पधारे थें . प्रभु ने यहां दो उपवास की तपस्या के साथ , गोदोहिका आसन में उत्कृष्ट ध्यान साधना की थी . फलतः प्रभु महावीर को वैशाख सुदी दशमी के दिन इसी नदी के पवित्र तट पर , अनंत केवल ज्ञान और अनंत केवल दर्शन प्राप्त हुआ था . तब प्रभु की वय बयालीस साल की थी .
ऋजु वालिका नदी के तट पर प्रभु महावीर ने ज्ञानावरण , दर्शनावरण , मोहनीय एवं अंतराय - इन चार घाती कर्मों का सर्वथा क्षय किया था . यही पर प्रभु को अविनाशी वीतराग भाव प्राप्त हुआ था . यही पर प्रभु महावीर के साडे बारह साल के कठोर तपस्या काल का समापन हुआ था और विश्व हित कारी तीर्थंकर काल का मंगल प्रारंभ हुआ था . यही पर प्रभु सर्व प्रथम बार भव्य एवं दिव्य समवसरण में बिराजित हुएं थें . यही पर प्रभु के समक्ष आठ महा प्रातिहार्य प्रगट हुए थें . यही पर प्रभु का मौन काल समाप्त हुआ था और प्रभु के देशना काल का प्रारंभ हुआ था . आगे के समय में तो प्रभु तीस साल तक प्राय: प्रतिदिन , दो प्रहर की देशना देते रहें लेकिन प्रभु की सर्व प्रथम देशना की सर्व प्रथम क्षण तो , ऋजु वालिका नदी के तट पर ही साकार हुई थी . पुरातन शास्त्रों में लिखा है कि जब प्रभु महावीर को केवलज्ञान एवं केवल दर्शन प्राप्त हुआ तब देवलोक से अगणित देवी देवताएं ऋजु वालिका नदी के मंगल तट पर आएं थें एवं प्रभु समक्ष भाव विभोर बनकर आनंद नृत्य करने लगे थें .
तब से लेकर आज तक श्री ऋजु वालिका नदी के इस तट क्षेत्र को तीर्थभूमि होने का गौरव एवं प्रभु महावीर के केवलज्ञान कल्याणक तीर्थ होने का सम्मान भी मिलता आया है . इस तीर्थक्षेत्र में एक प्राचीन जैन मंदिर है तथा अन्य दो नवनिर्मित जिनालय हैं . प्राचीन जैन मंदिर के गर्भगृह में प्रभु महावीर की चतुर्मुखी चरण पादुका बिराजमान है जिसके दर्शन से प्रभु महावीर के प्रथम समवसरण का एवं प्रभु की प्रथम देेशना का पवित्र स्मरण होता है .
सेंकडों सेंकडों सालों से इस प्राचीन जैन मंदिर में लाखों भक्त आते हैं और दर्शन वंदन पूजन करके धन्य हो जाते हैं . जैन समाज के लाखों तीर्थभक्तों में से एक तीर्थभक्त थें श्री नंदलाल देवचंद शेठ एवं श्रीमती प्रभावतीबेन नंदलाल शेठ . वो अपने जीवनकाल में सालों सालों तक इस तीर्थ में आते रहें और उत्कृष्ट भावों के साथ श्री महावीर स्वामी भगवान् की भक्ति एवं आराधना करते रहें . आप के चार सुपुत्र - चंद्रकांत भाई , धीरेन्द्र भाई , हेमेंद्र भाई , परेश भाई एवं तीन सुपुत्री कुमुदिनी बेन , कुसुम बेेन एवं नीलाबेन श्री ऋजुवालिका तीर्थ की भक्ति एवं आराधना में जुडते गयें .
एक तरफ मा बाप का प्रेम , प्रभु महावीर के इस तीर्थ के संग जुडा था और दूसरी तरफ संतानों का प्रेम , मा बाप के संग जुडा था . परिणाम यह हुआ कि प्रभु महावीर का जो तीर्थ , मा बाप के लिये आराध्य भूूमि था वही तीर्थ सभी संतानों के लिए भी आराध्य भूूमि बन गया . सभी संतानों ने संकल्प किया कि प्रभु महावीर की कैवल्य भूमि पर हम एक मनोहारी अभिनव तीर्थ का निर्माण करेंगे और अपने मा बाप के भक्ति भाव को मूर्त स्वरुप देंगे .
साधना का यह नियम है : आप यदि प्रामाणिकता के साथ पवित्र मनोरथ बनाते हैं तो प्रभु कृपा ऐसी बरसती है कि वह मनोरथ अवश्य साकार होता है . श्री नंदलाल देवचंद शेठ के संतानों का मनोरथ , प्रभु कृपा से आज साकार हो गया है . आज श्री ऋजुवालिका तीर्थ की भूमि पर ४४ एकड़ भूमि पर अत्यंत रमणीय श्री नंदप्रभा तीर्थ संकुल का निर्माण संपन्न हो चुका है .
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