Shri Aadinath Chalisa
Автор: Vikram Jain
Загружено: 2013-02-23
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जैन धर्म के संस्थापक और प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जन्म चैत्र कृष्ण नवमी को महाराज नाभिराय की पत्नी महारानी मरूदेवी के गर्भ से अयोध्या नामक स्थान पर हुआ था. इनके जन्म के समय चारों दिशाएं प्रकाश से जगमगा उठी और चारों ओर एक अनिवर्चनीय वातावरण निर्मित हो गया था. कथानुसार जब महान पुण्यशाली भगवान ऋषभदेव का जन्म हुआ तो भिन्न-भिन्न दिशाओं से 56 दिशाकुमारियां आयी. उन्होंने पहले इस प्रथम तीर्थंकर की माता को 3 प्रदक्षिणा करके वंदना की और फिर तीर्थंकर स्वरुप दिव्य बालक की स्तुति करके उनके सभी प्रकार के सूतिका कर्म किए. चूंकि प्रथम तीर्थंकर के जंघा पर वृषभ का चिन्ह था और इनके जन्म से पहले माता मरूदेव ने सर्वप्रथम वृषभ का स्वप्न देखा था, इसलिए इस दिव्य बालक का नाम ऋषभकुमार रखा गया. ऋषभदेव जी को भगवान आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है. वैदिक धर्म में इन्हें एक अवतार के रूप में माना गया है.
भगवान ऋषभदेव को वट वृक्ष के नीचे कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई थी. कई वर्षों तक लाखों प्राणियों को अहिंसा, सत्य आदि पंच महाव्रत रूप धर्म का उपदेश देने के बाद माघ कृष्ण चतुर्दशी को श्री कैलाश पर्वत पर भगवान ऋषभदेव ने समाधिभावपूर्वक समस्त कर्मों का क्षय करके निर्वाण को प्राप्त किया.
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