"तु ऐ जादी" धर्मेन्द्र नेगी # गढ़वाली कविता # Dharmendra Negi # garhwali kavi ta
Автор: Garhwali Sahitya Dharmendra Negi
Загружено: 2019-12-12
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ज्यूऽ ब्यळ्माण कु ही सै, तु घड़ेक ऐऽ जादी
बिसैकि बोझ हिया को जरसि थौ खैऽ जादी
डबखुणूं छौं चकोर सी मि त्वेतैंव जून समझि की
रयेन्दु नी कतैऽ त्वे बिन तु ऐकि झट भिंटैऽ जादी
तिसळि च्योळि सि मन मेरू तु छै एक बून्द बरखा सि
पराण छुटदी मेरा त्वे बिन बचै सकदी बचैऽ जादी
डंडक्यूं द्यबता सि छ हुयूं यु आज ज्यू - पराण मेरू
लगैकि प्रीत का जागर नचै सकदी नचैऽ जादी
खुल्यां छन द्वार-मोर मिन यीं जिकुड़ि का तेरा खातिर
तु यीं क्वठड़ि मा सदानि कु रै सकदी त रैऽ जादी
लिख्यां छन गीत जण चारेक'धरम'न तेरि तारिफ मा
अपणि तैं मिठ्ठि भौंण मा तू गै सकदी त गैऽ जादी
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धर्मेन्द्र नेगी
चुराणी रिखणीखाळ
पौड़ी गढ़वाळ
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