श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 5 (कर्मसंन्यास योग)
Автор: Veena Das
Загружено: 2025-10-29
Просмотров: 56
श्रीमद्भगवद् गीता – अध्याय 5 (कर्मसंन्यास योग)
इस अध्याय में श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्मयोग (कर्म करते हुए ईश्वर में ध्यान लगाना) और कर्मसंन्यास (कर्मों का परित्याग) के बीच का भेद स्पष्ट करते हैं।
भगवान बताते हैं कि निःस्वार्थ भावना से कर्म करने वाला, जो फल की चाह न रखकर अपने सभी कार्यों को भगवान को समर्पित करता है, वही वास्तविक संन्यासी है।
मुख्य संदेश:
कर्म का परित्याग नहीं, बल्कि कर्म करते समय ईश्वर की भावना बनाए रखना अधिक महत्वपूर्ण है।
ऐसे व्यक्ति को शांति, ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सच्चा योगी वही होता है, जो कर्म करते हुए भी आसक्त नहीं होता।
सारांश:
यह अध्याय यह सिखाता है कि जीवन में कर्म करते हुए भी मन को संतुलित रखना आवश्यक है।
Доступные форматы для скачивания:
Скачать видео mp4
-
Информация по загрузке: