Bhagawad Geeta (Hindi) Talk 240. Chapter -14, Shloka 3,4 Swamini Anaghananda, Chinmaya Mission,Thane
Автор: Chinmaya Mission Thane
Загружено: 2025-12-05
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गुणत्रयविभागयोग
श्रीमद्भगर्वीता के चौदहवें अध्याय का हमारे पूज्य आचायाX ने जो नामकरण किया है, वह है गुणत्रयविभागयोग। अध्यायों का नामकरण भूरि चिंतन के पश्चात किया गया है। इस नाम के द्वारा पूरे अध्याय के विषय का निर्वचन किया जाता है। किसी भी अध्याय का नाम सूत्र रूप से उस अध्याय के विषय की सूचना देता है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि चौदहवें अध्याय में गुणत्रय नामक विषय का विस्तार हुआ है, अर्थात इस अध्याय में त्रिगुण पर विचार हुआ है।
भगवान ने तेरहवें अध्याय के अंतमें कहा कि ज्ञानचक्षु से क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के भेद को देखने वाला परमात्मा को प्राप्त हो जाता है। अब प्रश्न होता है कि वह ज्ञान क्या है और उसकी क्या महिमा है तथा उस ज्ञान की प्राप्ति का सरल उपाय क्या है, इसका वर्णन करने के लिए भगवान चौदहवें अध्याय का विषय आरंभ करते है। बंधन दो से होता है - प्रकृति से और प्रकृति के कार्य गुणों से। प्रकृति के बंधन से छूटने के लिए भगवान ने तेरहवें अध्याय का विषय बता दिया। अब प्रकृति के कार्य गुणों के बंधन से छूटने के लिए भगवान चौदहवें अध्याय का विषय आरंभ करते है।
इस अध्याय में सत्त्व, रज और तम इन तीनों गुणों के स्वरूप का, उनके कार्य, कारण और शक्ति का तथा वे किस प्रकार किस अवस्था में जीवात्मा को कैसे बंधन में डालते है और किस प्रकार इनसे छूटकर मनुष्य परम पद को प्राप्त हो सकता है तथा इन तीनों गुणों से अतीत होकर परमात्मा को प्राप्त मनुष्य के क्या लक्षण है - इन्हीं त्रिगुण संबंधी बातों का विवेचन किया गया है। पहले साधनकाल में रज और तम का त्याग करके सत्त्वगुण को ग्रहण करना और अंत में सभी गुणों से सर्वथा संबंध त्याग देना चाहिए, इसको समझाने के लिए इन तीनों गुणों का विभागपूर्वक वर्णन किया गया है। इसलिए इस अध्याय का नाम गुणत्रयविभागयोग रखा गया है।
।। ॐ तत्सत्।।
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