जैन आगम ग्रंथ (Jain Agam) :सत्य या मिथ्या?
Автор: Lakshya ''To The Point"
Загружено: 2023-12-07
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जैन धर्म का साहित्य भाषा की दृष्टि से, व्याकरण की दृष्टि से, विज्ञान की दृष्टि से, आयुर्वेद की दृष्टि से, नाट्य कला की दृष्टि से, रस और गुणों की दृष्टि से बहुत ही अधिक विशाल एवं महानता को लिए हुए है। जैन धर्म में मूल ग्रंथि का उपदेश तीर्थंकर के माध्यम से होता है। उनकी दिव्यध्वनि 13 महाभाषा और 700 लघुभाषा में खिरती है। उनके समवशरण में 3 गति के जीव आते हैं - मनुष्य, तिर्यंच और देव।
जिस किस जीव को जो भी भाषा का ज्ञान होता है बल अपनी भाषा में वहाँ प्रश्न करता है और उसे उसकी ही भाषा में उसका उत्तर मिल जाता है। यह सब कुछ गणधर की ऋद्धियों के कारण से सम्भव होता है।
आगम को 12 अंगों में लिखा जाता है जिसे द्वादशांग कहते हैं। इसमें अलग अलग विषयों का वर्णन होता है। जैसे कि अध्यात्म शास्त्र, कथा शास्त्र, न्याय शास्त्र, गणित शास्त्र, भूगोल शास्त्र, विज्ञान शास्त्र, भाषा शास्त्र, व्याकरण शास्त्र, नीति शास्त्र, नाट्य शास्त्र इत्यादि।
वर्तमान में जो जैन साहित्य प्राप्त होता है उसकी प्राप्त प्राचीनतम भाषा प्राकृत मानी गयी है। इसका उदाहरण जैन धर्म का सबसे महान मंत्र णमोकार मंत्र है जो कि प्राकृत भाषा में आचार्य पुष्पदंत और आचार्य भूतबलि द्वारा लिख गाया था।------
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