चेन्नई का मशहूर सेंट थॉमस कैथेड्रल बेसिलिका | The Story of St Thomas Cathedral Basilica | Chennai
Автор: Peepul Tree World
Загружено: 2021-07-22
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चैन्नई के खूबसूरत मरीना बीच से चंद मीटरों के फ़ासले पर मौजूद है द् सेंट थॉमस कैथेड्रल बेसिलिका। यह चैन्नई में लोगों के आकर्षण का एक बड़ा केंद्र है। ऐसा माना जाता है कि इसी सेंट थॉमस ने भारत में ईसाई धर्म का परिचय करवाया था।
यह चर्च सेंट थॉमस को समर्पित है। सेंट थॉमस, ईसा मसीह के बारह प्रमुख भक्त, जिन्हें अपॉसल कहा जाता है, में एक थे। रिवायती आस्थाओं के मुताबिक़, ईसा मसीह के सिद्धांतों की शिक्षा देने के लिये सेंट थॉमस ने रोमन साम्राज्य के बाहर, बहुत दूर दूर तक के इलाक़ों का सफ़र किया था। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने सन 40 के आसपास, इंडो-पार्थियन साम्राजय स्थापित करने वाले राजा गॉन्डोफर्नीज से मुलाक़ात की थी जिन्होंने आज के अफ़ग़ानिस्ता तथा पंजाब पर हुकूमत की थी। सन 52 में वह समुद्र के रास्ते से मुज़िरिस( केरल) पहुंच गये थे। हालांकि उनकी भारत-यात्रा का शिला-लेख या पुरातत्व जैसा कोई सबूत नहीं हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार उन्होंने केरल ( इज़हारा पल्लीकल) में साढ़े सात चर्च बनवाये थे। यहां से उन्होंने मालाबार तट से लेकर दूरदराज़ के कोरोमंडल तट तक यात्रा की थी। मयलापुर(चैन्नई) से चंद किलोमीटर दूर एक छोटी सी पहाड़ी है जो सेंट थॉमस म़ाउंट के नाम से जानी जाती है। ऐसा विश्वास है कि सन 72 में सेंट थॉमस यहीं शहीद हुये थे। इसी जगह पर 16वीं सदी का एक तीर्थ-स्थल मौजूद है। आज वह एक महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल बन चुका है, जहाँ बड़ी तादाद में लोग आते हैं। ऐसा माना जाता है कि सेंट थॉमस को मयलापुर में दफ़नाया गया था और यही उनकी रिवायती आरामगाह है।
ऐसा बताया जाता है कि प्रसिद्ध यात्री मार्को पोलो सन 1292 में अपनी भारत यात्रा के दौरान इस मक़बरे को देखने आया था। जब सन 1521 में पुर्तुगाली चैन्नई आये तो उन्होंने इस मक़बरे को ख़स्ता हालत में छोड़ा हुआ पाया। उन्होंने तुरंत उस जगह पर सेंट थॉमस का चर्च मक़बरा बनवाने का फ़ैसला किया। स्थानीय मान्यता के मुताबिक़ मशहूर सेंट फ़्रांसिस ज़ेवियर भी सन 1545 में इस चर्च में आये थे और लगभग एक साल तक यहाँ रहे थे। इस चर्च को सन 1606 में केथैड्रल यानी प्रधान गिरजाघर का दर्जा मिला।
हालॉकि जो चर्च आज हम देख रहे हैं उसे सन 1896 में अंग्रेज़ों ने बनवाया था। नियो-गोथिक तर्ज़ पर बना यह चर्च वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। इस भव्य इमारत को बनाने के लिये उम्दा क़िस्म का संगमरमर, टीक की लकड़ी और ग्रेनाइट का उपयोग किया गया है। टीक से बनी चर्च की, रिब-वॉल्ट डिज़ाइन की छत और इमारत के अंदूरूनी हिस्सों की ख़ूबसूर्ती देखने लायक़ है।
चर्च को 34 चमकदार रंगीन कॉचों से सजाया गया है जिनमें सेंट थॉमस सहित अन्य संतो को चित्रित किया गया है। चर्च के अंदर मदर मेरी की लकड़ी की बनी खूबसूरत मूर्ती भी मौजूद है।
इस चर्च की सबसे ख़ास बात ,मुख्य वेदी के नीचे बना इसका गुम्बदनुमा पूजास्थल है जो संभवता सेंट थॉमस का है। चर्च जायें तो पूजास्थल के साथ ही लगे संग्रहालय को ज़रूर देखें, जहां देव-दूत और उनके जीवन से जुड़ी पवित्र निशानियां रखी गई हैं।
सन 1956 में इस मशहूर चर्च को माइनर बासिलिका या विशेष चर्च का दर्जा मिल चुका है। आज यह चर्च एक पवित्र स्थल बन गया है जहां सभी आस्थाओं के लोग सेंट थॉमस को श्रृद्धा पेश करने आते हैं।
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