साधो सहज समाधि भली | Kabir Das Bhajan | आत्मज्ञान और गुरु कृपा का रहस्य | Kabir ke Dohe | Kabir Vani
Автор: कबीर वाणी - अंतरयात्रा भजन
Загружено: 2025-10-27
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🪔 भजन: साधो सहज समाधि भली - यह भजन बताता है कि सच्ची समाधि किसी कठिन तपस्या या योग से नहीं मिलती, बल्कि गुरु की कृपा और सहज भाव से प्राप्त होती है।
कबीरदास जी कहते हैं — जब भीतर जागृति आती है, तो हर कार्य, हर सांस, हर क्षण पूजा बन जाता है।
सहज समाधि वह अवस्था है जहाँ मन दुख-सुख से परे होकर ईश्वर में लीन हो जाता है।
🌸 भजन का भावार्थ (सरल भाषा में, पद दर पद):
1️⃣ “साधो सहज समाधि भली, गुर परताप जा दिन से जागी, दिन दिन अधिक चली।”
— हे साधो! सहज समाधि सबसे श्रेष्ठ है। जब गुरु की कृपा से आत्मा जागती है, तब यह समाधि दिन-प्रतिदिन गहराती जाती है।
2️⃣ “जहँ जहँ डोलौं सो परिकरमा, जो कछु करौं सो सेवा। जब सोवौं तब करौं दंडवत, पूजौं और न देवा।”
— अब मेरा हर चलना भगवान की परिक्रमा बन गया है, और जो कुछ मैं करता हूँ वह उनकी सेवा है।
जब मैं सोता हूँ, तो वह भी ईश्वर के चरणों में प्रणाम के समान है — अब कोई और देवता नहीं बचा जिसे पूजूं।
3️⃣ “कहौं सो नाम सुनौं सो सुमिरन, खाँव पियांै सो पूजा। गिरह उजाड़ एक सम लेखौं, भाव मिटावौं दूजा।”
— जो कुछ मैं बोलता हूँ, वह ईश्वर का नाम है; जो कुछ सुनता हूँ, वह सुमिरन है।
खाना-पीना भी पूजा बन गया है। घर और जंगल मेरे लिए समान हैं — क्योंकि मन से अब ‘दूसरे’ का भाव मिट गया है।
4️⃣ “आँख न मूंदौ कान न रूंधौ, तनिक कष्ट नहिं धारौं। खुले नैन पहिचानौं हँसि हँसि, सुन्दर रूप निहारौं।”
— अब मुझे आंखें बंद करने या कान रोकने की ज़रूरत नहीं।
मैं खुली आँखों से हर जगह उसी सुंदर ईश्वर को देखता हूँ — वह हर रूप में विद्यमान है।
5️⃣ “सबद निरन्तर से मन लागा, मलिन बासना त्यागी। ऊठत बैठत कबहुँ न छूटै, ऐसी तारी लागी।”
— मेरा मन अब निरंतर परम शब्द (ईश्वर) से जुड़ा है।
सारी बुरी इच्छाएँ मिट गई हैं, और यह जुड़ाव इतना गहरा है कि उठते-बैठते कभी टूटता नहीं।
6️⃣ “कहै कबीर यह उनमनि रहनी, सो परगट कर गाई। दुख सुख से जोइ परे परम पद, तेहि पद रहा समाई।”
— कबीर कहते हैं — यह “उनमनि अवस्था” (जहाँ मन शांत और स्थिर हो जाता है) ही सच्चा परम पद है।
जो इस अवस्था में पहुँचता है, वह दुख-सुख से परे होकर परमात्मा में लीन हो जाता है।
💫 सार (निष्कर्ष)
कबीरदास जी का यह भजन हमें सिखाता है कि सच्ची समाधि बाहर नहीं, भीतर है।
जब गुरु की कृपा से मन शांत होता है, तब जीवन का हर क्षण ध्यान बन जाता है।
सहज समाधि का अर्थ है — जहाँ कुछ करने की जरूरत नहीं, बस होने की अवस्था रह जाती है।
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