सदाशिवोऽहम् | शिव सहस्रनाम एवं ललिता सहस्रनाम भावों से युक्त दिव्य संस्कृत भजन | SadaaShivoham
Автор: KYLOCRONEFILMS
Загружено: 2025-10-25
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यह दिव्य संस्कृत भजन “सदाशिवोऽहम्” लिंगपुराण, शिव सहस्रनाम, ललिता सहस्रनाम, श्रीसूक्त, विष्णु सहस्रनाम एवं रुद्रीपाठ के पवित्र श्लोकों से प्रेरित है।
भक्ति, ध्यान और ताण्डव का यह समागम भगवान सदाशिव को समर्पित है — जो आद्य शक्ति, सृष्टि के कारण और स्वयं परब्रह्म हैं।
🔸 गीत विषय: सदाशिव स्तुति, शिव तत्त्व, ललिता सहस्रनाम भाव
🔸 भाषा: संस्कृत
🔸 भाव शैली: मंत्र–संगीत, ध्यानात्मक + ताण्डव मिश्रण
🔸 श्रवण हेतु: ध्यान, पूजन, आराधना, या रात्रि जप
📿 "सदाशिवोऽहम् – अहं शिवोऽस्मि" — यही इस भजन का आत्ममंत्र है।
🎧 गायन में ओंकार, डमरू, शंखध्वनि और शान्त स्वर नाद का प्रयोग करें।
🙏 श्रवण से चित्त शुद्ध होता है, मन शिवत्व में विलीन हो जाता है।
Producer: Dr. Sudhir Kumar Pal
Production: KyloCrone Films
Lyrics:
सदाशिवस्तोत्रम् – “ॐ नमः सदाशिवाय”
[॥ प्रथमोऽध्यायः – मंगलारम्भः ॥]
ॐ नमः सदाशिवाय चन्द्रशेखराय नमः ।
गङ्गाधराय त्रिलोचनाय, नीलकण्ठाय ते नमः ॥
भवभयहारिणे, भवपावनाय,
भूतनाथाय, महेश्वराय ॥
शिवशङ्कर शम्भो सदाशिवोऽहम्,
चिदानन्दरूपं शरणं मम त्वम् ॥
[॥ द्वितीयोऽध्यायः – श्रीसूक्तभावसमन्वितः ॥]
ललिते करुणे शङ्करार्धाङ्गिनी,
त्रिपुरसुन्दरी नित्यकल्याणिनी ।
त्वं हि प्रसन्ना जगतां मातरि,
शिवस्य भार्या भवभक्तिपरि ॥
“हिरण्यवर्णा हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्” —
शिवस्य हृदि स्थितां देवीम् प्रणमाम्यहम् ॥
[॥ तृतीयोऽध्यायः – विष्णुतत्त्वसंग्रहः ॥]
शिवो विष्णुर्वा न भेदोऽस्ति कदाचन,
एकोऽयं पुरुषो विश्वरूपधारी ।
सदाशिवो हृषीकेशो महेश्वरः सदा,
भवाति भक्तानुग्रहं करोति निरन्तरम् ॥
“विष्णुं जिष्णुं महादेवं” —
शिवं नारायणं हरिम् ॥
[॥ चतुर्थोऽध्यायः – रुद्ररूपभक्ति ॥]
नमस्ते रुद्र रूपाय, महातेजोमयाय च ।
नमः शर्वाय सोमाय, नमः कालाय मृडाय च ॥
त्वमेव जगतः कारणं, त्वमेव जगतः पालनं ।
त्वमेव संहरसि विश्वमिदं, त्वं हि सदाशिवोऽहम् ॥
[॥ पञ्चमोऽध्यायः – सहस्रनामनमनम् ॥]
ॐ नमो भवाय नमः शंकराय,
ॐ नमो हराय नमः शर्वाय ।
ॐ नमो ईशाय नमः त्र्यंबकाय,
ॐ नमो महेश्वराय नमः सदाशिवाय ॥
सहस्रनाममाधुर्येण गीयते नाम ते हरि–हर–रूपिणः,
त्वमेव परं तत्त्वं, त्वमेव शिवः शान्तिः ॥
[॥ षष्ठोऽध्यायः – ताण्डवलयसमापनम् ॥]
नृत्यति त्रिनेत्रः सुदीप्तजटायां,
गङ्गा प्रवाहो लसति शिरसि ।
दिगम्बरं भस्मलिप्ततनुं,
वन्दे सदाशिवं अनादिमध्यम् ॥
[॥ उपसंहार॥]
शिवं शान्तं सनातनं,
सदाशिवं परमं पदम् ।
भजामी शंकरं नित्यं,
भवबन्धविमोचनम् ॥
[🌿 समर्पणम्]
इदं गीतं समर्पयामि सदाशिवाय महादेवाय।
यः पठति, शृणोति, वा भावयति,
स एव शिवो भवति —
“सदाशिवोऽहम्। अहं शिवोऽस्मि।”
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