मुल्लाभीरी शंकर जी का प्राचीन प्रसिद्ध मंदिर है
Автор: Manoj Singh YouTube
Загружено: 2025-04-30
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पिसावां से मिश्रिख जाने वाले मार्ग पर मुल्लाभीरी के शिव मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं में अगाध आस्था है। यहां आने वाले भक्त श्रद्धा भाव के साथ पीतल की घंटी अर्पित करते हैं। इसके अलावा यहां और कोई चढ़ावा नहीं चढ़ता। लाखों की संख्या में यहां घंटियां आकर्षण का केंद्र हैं। वर्ष भर यहां विविध धार्मिक अनुष्ठान चलते रहते हैं। सावन माह में तो बहुत भीड़ होती है। यहां पर पूरे माह अखंड रामचरित मानस का पाठ चलता रहता है।
वर्तमान समय में जहां आज शिव मंदिर है, पहले यहां टीला हुआ करता था। लोगों ने खुदाई शुरू की तो भगवान शिव की मठिया निकली, पास में ही कुआं भी था। 70-80 वर्ष पूर्व महात्मा ज्ञान दास यहां आए और मंदिर स्थल पर पूजा अर्चना शुरू की। इसके बाद मंदिर का सुंदरीकरण होता गया। ज्ञान दास के प्रयास से छोटी सी मठिया आज विशाल मंदिर परिसर के रूप में स्थापित है। गैर जिलों तक से लोग यहां आते हैं।
मुल्लाभीरी शिव मंदिर की मठिया किसने स्थापित की थी। इसकी किसी को जानकारी नहीं है। टीले की खोदाई में निकले स्वयं भू शिवलिंग अति प्राचीन है। यह शिवलिंग विशेष आकार का है। आने वाले शिव भक्त भोले बाबा को सामर्थ्य अनुसार घंटा व घंटी अर्पित करते हैं। मंदिर आज भी ऊंचे स्थान पर ही है। रुद्राभिषेक तो आए दिन चला करते हैं। सावन भर यहां मेला लगता है। गोमती नदी व राजघाट से कांवड़ लेकर शिवभक्त यहां पहुंचते हैं।
सावन माह में श्रद्धालुओं के विभिन्न अनुष्ठानों व आगमन को लेकर तैयारियां की जाती हैं। मंदिर के आसपास कई बरामदे श्रद्धालुओं ने बनवाए हैं। यहां रामचरितमानस का पाठ होता है। सावन के महीने में प्रतिदिन 10 से 15 मानस पाठ होते हैं। भोले बाबा का नियमित फूलों से शृंगार किया जाता है। सोमवार को कांवड़ियों के लिए अलग से लाइन की व्यवस्था रहती है।
मुल्लाभीरी शिव मंदिर जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर है। सीतापुर से रामकोट, कुतुब नगर होकर पहुंचा जा सकता है। महोली से पिसावां होकर मंदिर जा सकते हैं। मिश्रिख से कुतुबनगर होकर मंदिर पहुंचा जा सकता है।
बाबा का यह प्राचीन स्थान शिव भक्तों के लिए कल्याणकारी है। यहां कोई चढ़ावा व दान की बाध्यता नहीं है। शिव भक्त श्रद्धा भाव से घंटी चढ़ाते हैं। बाबा की सेवा व दर्शन पुण्यदायक है।
मुल्लाभीरी शिव मंदिर में दर्शन करने से मन को अद्भुत शांति मिलती है। बाबा बहुत कृपालु हैं। सावन माह में हम नियमित बाबा को बेलपत्र अर्पित कर जलाभिषेक करते हैं। यह सौभाग्य की बात है।
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