सात सूत नौ गाड़ बहत्तरि पाट I Sant Kabir Das Ji I Kabir Amritwani I Bijak Kabir Shaeb
Автор: famous kabir
Загружено: 2025-10-27
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भावार्थ:
यहाँ “रामरा” अर्थात् राम का नाम, सत्य, या ईश्वर की चेतना है। कबीर कहते हैं कि “राम का बुनाई का धागा” चल पड़ा है — अर्थात ईश्वर-स्मरण की साधना प्रारंभ हुई है।
“घर छोड़ेजात जोलाहो” का अर्थ है — जोलाहा (बुनकर) अपने घर अर्थात् देह और सांसारिक आसक्ति को त्याग कर ईश्वर की ओर चला।
यहाँ “गज, सूत, गाड़, पाट” आदि शब्द कपड़े के माप से जुड़े हैं, पर कबीर इनसे साधना की परतें दिखाते हैं।
• “गज नौ-दस-उनईस” — साधना की लंबाई, यानी भिन्न-भिन्न साधकों की अलग अवस्थाएँ।
• “सात सूत नौ गाड़ बहत्तरि पाट” — इंद्रियों, मन, प्राण, और तत्वों के संयोजन का प्रतीक।
यहाँ कबीर कहते हैं — यह बुनाई (सृष्टि या प्रेम का वस्त्र) न तो तूल (ऊन) से बनी है, न किसी नाप से।
“पैसन सेर अढ़ाई” का मतलब है — इसका मूल्य सांसारिक धन से नहीं आँका जा सकता।
यह प्रेम की वस्तु है — न घटती है, न बढ़ती है, न पुरानी होती है।
जोलाहा (साधक) प्रतिदिन उठकर अपने “खसम” अर्थात् ईश्वर से जुड़ता है।
“भीनी पुरिया” अर्थात अधूरी साधना, जो केवल बाहरी कर्मकांड है, वह बेकार है।
जोलाहा (साधक) अब क्रोध छोड़, भक्ति के मार्ग पर चल पड़ा है।
कबीर अंत में कहते हैं — हे संतो! जिसने यह सृष्टि रची है, उसी की भक्ति करो।
संसार के झंझट (पसार) को छोड़ दो।
जो इस माया-जाल में फँसा रहेगा, वह इस कठिन भवसागर को पार नहीं कर पाएगा।
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