परमात्मा की शक्तियाँ || Shri Mataji Speech
Автор: Divine sahajyog
Загружено: 2025-12-26
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परमात्मा की शक्तियाँ || Shri Mataji Speech
यह जो शक्ति है, इसमें क्या निहित है और परमात्मा का कौन-सा स्वरूप इसमें प्रकट होता है—इसे समझना अत्यंत आवश्यक है। इसे ईश्वरी शक्ति कहा जाता है। यह परमात्मा का ईश्वरी अंश है, जिसमें परमात्मा स्वयं साक्षी स्वरूप में स्थित रहते हैं। जब यह शक्ति हमारे भीतर जागृत होती है, तो हमारे अंदर भी साक्षी भाव उत्पन्न होता है। यही साक्षी स्वरूपत्व संसार में कार्यान्वित होकर जिन स्पंदनों के रूप में प्रकट होता है, उन्हें हम आज “वाइब्रेशन्स” के रूप में जानते हैं। हमारे भीतर से और हमारे हाथों से जो वाइब्रेशन्स प्रवाहित होते हैं, वही इस ईश्वरी शक्ति की अभिव्यक्ति हैं।
यह शक्ति सर्वत्र विद्यमान है—चाहे कोई वस्तु जड़ हो, स्थिर हो या जीवित। अणु, रेणु, मॉलेक्यूल्स और एटम्स, सभी में यह शक्ति साक्षी रूप में स्थित रहती है। कुछ लोग इसे चैतन्य लहरी कहते हैं, परंतु चैतन्य यदि परमात्मा की पूर्ण शक्ति है, तो इसे केवल लहरी कहना ही उचित है—परमात्मा के प्रेम का स्पंदन। मनुष्य के हृदय में यह शक्ति प्राण के रूप में स्पंदित होती है, इसी कारण इसे प्राणशक्ति भी कहा जाता है और यही जीवन का आधार है।
दूसरी शक्ति ब्रह्मा या माँ सरस्वती की शक्ति है, जिसे महासरस्वती कहा जाता है। यही सृष्टि की रचनात्मक शक्ति है, जिसके द्वारा ग्रह-नक्षत्र, सूर्य-चंद्र और सम्पूर्ण पदार्थ का निर्माण हुआ। यह शक्ति हमारे पेट में और विराट के भी पेट में स्थित है। यही इवॉल्विंग फोर्स है, जिसे रजोगुण कहा जाता है, जिसके कारण विकास और उत्क्रांति संभव होती है।
तीसरी शक्ति महालक्ष्मी की शक्ति है, जो चेतना और अवेयरनेस का स्वरूप है। यह बुद्धि में स्थित रहती है और संसार में घटित होने वाली हर प्रक्रिया को जानने की क्षमता देती है। इसे सत्त्वगुणी शक्ति कहा जाता है।
जब ये तीनों शक्तियाँ एकाकार हो जाती हैं, तब मोक्ष या सैल्वेशन की अवस्था आती है, जिसे गुणातीत दशा कहा जाता है। इस अवस्था में हाथों से वाइब्रेशन्स बहते हैं, कुंडलिनी की स्थिति का बोध होता है और दूसरों को भी आत्मसाक्षात्कार देने की क्षमता जागृत हो जाती है। यही चौथा आयाम है, जहाँ एब्सोल्यूट नॉलेज, एब्सोल्यूट लव और एब्सोल्यूट ब्लिस का अनुभव होता है। यह सब उस अवशिष्ट शक्ति के कारण संभव होता है, जो त्रिकोणाकार अस्थि में स्थित कुंडलिनी के रूप में छिपी रहती है और तीनों शक्तियों को भेदकर एक कर देती है। यही वास्तविक गुणातीत अवस्था है।
Reference :- 1996 - 0416 ( Part 1 ) || Divine Sahajyog
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