KDN | ताज़ा ख़बर | सरकारी स्कूल या भूत बंगला? देखिए चौंकाने वाली हकीकत |
Автор: KDN
Загружено: 21 апр. 2025 г.
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सागर जिले के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की लापरवाही, ताले लटकते स्कूल, अनुपस्थित स्टाफ और बच्चों के उज्जवल भविष्य पर मंडराता संकट।
शिक्षकों की मनमानी से जूझ रहा सागर जिले का शिक्षा तंत्र, दूरस्थ क्षेत्रों में लटकते रहते हैं स्कूलों पर ताले
रिपोर्टर: चाली राजा ठाकुर, सागर (मालथोन)
राज्य सरकार द्वारा शिक्षा को बढ़ावा देने और नामांकन दर बढ़ाने के लिए भले ही अनेक नवाचार किए जा रहे हों, लेकिन सागर जिले के दूरस्थ ग्रामीण अंचलों में स्थित सरकारी स्कूलों की वास्तविकता इन दावों की पोल खोल रही है। जिम्मेदार अधिकारियों की अनदेखी और शिक्षकों की मनमानी के कारण स्कूलों में ताले लटकते मिल रहे हैं, जिससे ग्रामीण छात्र शिक्षा से वंचित हो रहे हैं।
शनिवार को शासकीय एकीकृत माध्यमिक शाला, रेडॉन मॉल का निरीक्षण करने पहुंचे हमारे संवाददाता को 10:30 बजे वहां मात्र एक शासकीय शिक्षक श्रीमती मोनिका हलवा उपस्थित मिलीं। बाकी चार शिक्षक अनुपस्थित थे। चार में से तीन अतिथि शिक्षक ही स्कूल में उपस्थित पाए गए। ग्रामीणों के अनुसार, कुछ शिक्षक महीनों से स्कूल नहीं आ रहे हैं।
इस कारण विद्यालय में बच्चों का नामांकन भी घट रहा है। कई अभिभावकों ने अपने बच्चों को मजबूरीवश निजी स्कूलों में दाखिला दिला दिया है। स्कूल में मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था भी लचर है। भोजन लकड़ी के चूल्हे पर पकाया जा रहा है और रसोईघर के बाहर आवारा कुत्ते सोते नजर आए। स्कूल परिसर में आवारा मवेशियों का जमावड़ा भी देखने को मिला।
इसी प्रकार शासकीय प्राथमिक शाला करैया माफी में शनिवार को सुबह 11:26 बजे ताला लटका मिला। न कोई शिक्षक था, न ही कोई छात्र। स्थानीय लोगों ने बताया कि दोनों शिक्षक स्थानीय हैं और शिकायत करने वालों को धमकाते हैं।
शासकीय प्राथमिक शाला तिगरा बुजुर्ग का हाल भी कुछ अलग नहीं है। 11:30 बजे वहां भी स्कूल पर ताला लगा था और बच्चों को मध्यान्ह भोजन नहीं मिल रहा था। ग्रामीणों ने बताया कि शिक्षक कभी-कभार ही स्कूल आते हैं। इससे तंग आकर कई परिजनों ने अपने बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला दिला दिया है, जबकि गरीब तबके के बच्चे अब भी इन्हीं स्कूलों पर निर्भर हैं।
स्थानीय प्रशासन और शिक्षा विभाग की उदासीनता साफ तौर पर नजर आ रही है। इन स्कूलों को ‘दूरस्थ क्षेत्र’ मानते हुए न तो नियमित निरीक्षण होता है और न ही कोई कठोर कार्रवाई। गर्मियों में तो स्थिति और भी बदतर हो जाती है, जब अधिकारी और शिक्षक दोनों ही इन क्षेत्रों से दूरी बना लेते हैं।
ग्रामीणों का कहना है,
“बच्चों का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है। जब स्कूल समय पर नहीं खुलते, शिक्षक नहीं आते, तो पढ़ाई कहां से होगी?”
यह हालात साफ तौर पर दर्शाते हैं कि यदि समय रहते प्रशासन ने गंभीरता नहीं दिखाई, तो शिक्षा की जड़ें इन इलाकों में पूरी तरह कमजोर हो जाएंगी। शिक्षा विभाग को तत्काल प्रभाव से निरीक्षण, कार्रवाई और जवाबदेही तय करनी चाहिए, वरना यह लापरवाही बच्चों के भविष्य पर भारी पड़ सकती है।
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