Shankh Naad 5 minutes | extremely powerful Conch shell sound | Shankhadhwani
Автор: Remedial Sounds
Загружено: 8 янв. 2018 г.
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Shankh Naad 5 minutes, extremely powerful Shankh Sound for cleansing negative energy and bring calmness in our mind. Mahashivratri isha 2021 | mahashivratri 2021
Enjoy a simple, yet profound meditative Sound to restore mental balance and cleansing negative energy. It helps to eliminate stress and anxiety and brings calmness in our mind.
Advice: Stereo headphones are required to experience this ultimate sound technology.
Warning! If you experience any Trance State during the meditation while practicing Meditation using this sound please consult with any Yogi or Guru!
हिंदू धर्मशास्त्र में पूजा-पाठ, उत्सव, हवन, युद्ध, विजय, आगमन, विवाह, राज्याभिषेक जैसे हर शुभ कार्य में शंख बजाना आवश्यक माना जाता है। शंख की गहरी, तीव्र और गूंजती हुई ध्वनि अपने आप में इतनी पवित्र होती है कि हर मन को अपने स्पर्श से आध्यात्मिकता से भर देती है।
मंदिरों में सुबह-शाम आरती के समय शंख बजाना अनिवार्य नियम है। शंखनाद के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। दुर्गा या काली पूजा तो शंखनाद के बिना संपन्न मानी ही नहीं जाती।
अथर्ववेद के चौथे कांड के दसवें सूक्त में कहा गया है कि शंख अंतरिक्ष, वायु, ज्योतिमंडल और स्वर्ण से युक्त है। इसकी ध्वनि शत्रुओं को निर्बल करने वाली है। यही हमारा रक्षक है। यह राक्षसों और पिशाचों को वशीभूत करने वाला, अज्ञानता, रोग एवं दरिद्रता को दूर भगाने वाला तथा आयु को बढ़ाने वाला होता है। इस प्रकार देखा जाए तो शंख हर तरह से मानव के लिए कल्याणकारी है।
भगवान शिव को कभी न चढ़ाएं शंख से जल, ये है कारण हिंदू धर्म वैसे तो शंख को एक पवित्र वस्तु के रूप में पूजा जाता है और सभी देवी देवताओं के ऊपर शंख से जल चढ़ाने की परंपरा है। भगवान विष्णु को यह बहुत पसंद है लेकिन भगवान शिव को शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है। ऐसा क्यों है इसके पीछे शिवपुराण में एक कथा का वर्णन है। जिसके अनुसार शंखचूड नाम का महापराक्रमी दैत्य हुआ करता था जो शंखचूड दैत्यराम दंभ का पुत्र था। दैत्यराज दंभ को लंबे समय तक संतान सुख की प्राप्ती नहीं हुई थी तो उसने भगवान विष्णु की घोर तपस्या की जिससे वह प्रसन्न हो गए और दंभ ने उनसे तीनों लोको के लिए अजेय एक महापराक्रमी पुत्र का वर प्राप्त कर लिया।
इसके बाद दंभ के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम शंखचूड़ रखा गया। शंखचुड ने भी ब्रह्माजी के घोर तपस्या की और उन्हें प्रसन्न कर वर मांगा कि वो देवताओं के लिए अजेय हो जाए। ब्रह्माजी ने इसके लिए उसे श्रीकृष्णकवच दिया और कहां कि तुम धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह कर लो इसके बाद तुम्हें कोई परास्त नहीं कर पाएगा।
ब्रह्मा की आज्ञा से तुलसी और शंखचूड के बीच विवाह संपन्न हो गया। ब्रह्मा के वरदान के बाद शंखचूड ने तीनों लोकों पर अधिकार प्राप्त कर लिया है। देवताओं ने परेशान होकर विष्णु भगवान से मदद की गुहार लगाई परंतु उन्होंने खुद दंभ को ऐसे पुत्र का वरदान दिया था। अत: उन्होंने देवताओं से शिव भगवान की शरण में जाने के लिए कहा तब भगवान शिव ने देवताओं के दुख दूर करने का निर्णय लिया। लेकिन यह इतना आसान नहीं था क्योंकि श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पातिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने में सफल नहीं हो पा रहे थे। इन परिस्थितियों में विष्णु भगवान ने ब्राह्मण रूप धारण कर दैत्यराज से उसका श्रीकृष्णकवच दान में ले लिया। इसके बाद शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के शील का हरण कर लिया।
इसके बाद शिव ने शंखचूड़ को अपने त्रिशुल से भस्म कर दिया था और उसकी हड्डियों राख से ही शंख का निर्माण हुआ। चूंकि शंखचूड़ विष्णु भक्त था अत: लक्ष्मी-विष्णु को शंख का जल अर्पित करने पर वह बहुत प्रसन्न होते हैं। परंतु शिव ने चूंकि उसका वध किया था अत: शंख का जल शिव को चढ़ाने के लिए मना किया गया है। इसी वजह से भगवान शिव को शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है।

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