Role of Arya Samaj in Present time, Full video कैलाश सत्यार्थी, Titoli arya sammelan
Автор: Mission Aryavart
Загружено: 2025-03-13
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महर्षि दयानन्द सरस्वती की 200वीं जयंती एवं आर्य समाज के 150 वर्ष पूर्ण होने पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय आर्य विद्वत् महासम्मेलन का भव्य समापन
नोबल शांति पुरुस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी अन्तरराष्ट्रीय आर्य विद्वत् महासम्मेलन में पहुंचे।
मै आर्य समाज के मंच पर आता हूँ तो मुझे लगता है मै अपनी माँ की गोद मे आ गया - कैलाश सत्यार्थी
आर्य समाज अंधविश्वास, जातिवाद और धार्मिक कट्टरता को समाप्त करके वसुधैव कुटुंबकम की भावना को प्रबल करेगा- स्वामी आर्यवेश
टिटौली, रोहतक, 9 मार्च – महर्षि दयानन्द सरस्वती की 200वीं जन्म जयंती एवं आर्य समाज की स्थापना के 150 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय आर्य विद्वत् महासम्मेलन का भव्य समापन रोहतक के टिटोली गांव स्थित स्वामी इन्द्रवेश विद्यापीठ में संपन्न हुआ। इस महासम्मेलन में भारत सहित 9 देशों और 15 राज्यों से आए विद्वानों, संतों, आर्य समाज के प्रतिनिधियों एवं अनुयायियों ने भाग लिया। भारत के अतिरिक्त अमेरिका, जर्मनी, हॉलैंड, दक्षिण अफ्रीका, मोरिसस, न्यूजीलैंड, केन्या, युगांडा, ओस्ट्रेलिया, कनेडा से प्रतिनिधि शामिल हुए।
महासम्मेलन के अंतिम दिन नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि जब भी मै आर्य समाज के मंच पर आता हूँ तो मुझे लगता है मै अपनी माँ की गोद मे आ गया हूं। उन्होंने आगे कहा कि मैंने ज़ब अपना नोबल शांति पुरुष्कार राष्ट्र को समर्पित किया तो उसकी प्रेरणा मुझे आर्य समाज से मिली। ऋषि दयानन्द वो आग थे जिसने समाज से अज्ञान, अंधकार और अन्याय को जलाकर राख़ कर दिया।
उन्होंने बढ़ते बाल यौन अपराध पर चिंता जताई। सभी आयोजको ने उनका स्वागत किया। इस महासम्मेलन में विभिन्न देशों से आए विद्वानों ने महर्षि दयानन्द सरस्वती के विचारों पर प्रकाश डाला। आर्य समाज के सर्वोच्च संगठन सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा नई दिल्ली के महासचिव प्रो. विट्ठल राव आर्य ने बताया कि कैसे दयानन्द सरस्वती ने समाज को रूढ़ियों से मुक्त कर एक वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण प्रदान किया। उनके “सत्यार्थ प्रकाश” जैसे ग्रंथ आज भी सामाजिक सुधार और भारतीय संस्कृति के पुनरुद्धार के लिए मार्गदर्शक हैं।
समापन और संकल्प
महासम्मेलन के समापन पर स्वामी आर्यवेश ने सभी विद्वानों और आर्य समाज के प्रचारकों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह आयोजन केवल एक सम्मेलन नहीं, बल्कि वैदिक पुनर्जागरण का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। उन्होंने सभी आर्य समाजी बंधुओं से आह्वान किया कि वे वेदों के प्रचार-प्रसार और समाज सुधार के इस कार्य को निरंतर आगे बढ़ाएं।
नाड़ी वैध कायाकल्प के संस्थापक सत्यप्रकाश आर्य ने कहा की आगामी युग आयुर्वेद का है।
पूर्व आईपीएस डॉक्टर आनंद कुमार ने इस अवसर पर कहा कि इस महासम्मेलन ने यह संदेश दिया कि महर्षि दयानन्द सरस्वती के विचार केवल भारत तक सीमित नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए प्रासंगिक हैं। आर्य समाज के 150 वर्ष पूरे होने पर यह आयोजन ऐतिहासिक साबित हुआ और इसने समाज में वैदिक मूल्यों को पुनर्स्थापित करने की दिशा में एक नया अध्याय जोड़ा। इस अवसर पर स्वामी विदेह योगी कुरुक्षेत्र, स्वामी ऋतस्पति होशंगाबाद, स्वामी व्रतानन्द उड़ीसा, डॉक्टर अनिल आर्य दिल्ली, साध्वी उत्मा यति, राजेश राजस्थान, बिरजानंद एडवोकेट, सीमा दहिया, प्रो. सूखदा सोलंकी देहरादून, डॉक्टर नरेश धीमान अजमेर, हरहर आर्य झारखण्ड, डॉक्टर नवीन आर्य, अमृतसर, कमल आर्य मध्य्प्रदेश आदि प्रतिनिधियों ने सम्बोधित किया।
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आर्य समाज को मिले चार नए संन्यासी
ऋषि जन्म जयंती पर अपना पूरा जीवन समर्पित करने का लिया निर्णय
इस महासम्मेलन की एक विशेष उपलब्धि रही चार सन्यास दीक्षाएँ, जो कि आर्य संन्यासी स्वामी आर्यवेश द्वारा संपन्न कराई गईं। उन्होंने दीक्षित संन्यासियों को वैदिक सिद्धांतों के अनुसार जीवन जीने की प्रेरणा दी और उन्हें आर्य समाज की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने का संकल्प दिलाया। महाराष्ट्र के शिवाजी राव शिंदे एडवोकेट संन्यास के बाद स्वामी शिवारूद्रवेश बने जबकि
मध्यप्रदेश के महेंद्र सिंह स्वामी स्वामी महेंद्रानंद, आगरा के दिव्यमुनी स्वामी दिव्यानंद तथा सत्यमुनी अब स्वामी सत्यानंद बने। उन्होंने कहा कि आगामी शताब्दी ऋषि दयानन्द के विचारों को ओर ज्यादा मजबूती से लागु करने की है। समाज में व्याप्त अंधविश्वास, जातिवाद और धार्मिक कट्टरता को समाप्त करके वसुधैव कुटुंबकम की भावना को प्रबल करना है
अंतरराष्ट्रीय वैदिक परिषद की स्थापना
महासम्मेलन के दौरान अंतरराष्ट्रीय वैदिक परिषद के गठन की घोषणा की गई। इस परिषद का उद्देश्य संपूर्ण विश्व में वेदों के ज्ञान का प्रसार करना और वैदिक परंपराओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्थापित करना होगा। परिषद के माध्यम से वैदिक शंकाओं का समाधान किया जाएगा और इसे एक शोध व अध्ययन केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। इस परिषद के गठन से आर्य समाज की गतिविधियों को वैश्विक स्तर पर मजबूती मिलेगी और वैदिक शिक्षाओं को आधुनिक संदर्भों में प्रस्तुत किया जा सकेगा।
वैदिक शिक्षा के प्रचार हेतु शास्त्रार्थ महारथी महाविद्यालय की जल्द होगी स्थापना
वैदिक विचारों और शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार को और अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से डॉ. जवळन्त कुमार ने शास्त्रार्थ महारथी महाविद्यालय की स्थापना का प्रस्ताव रखा ओर सभी विद्वानों ने इसको स्वीकार किया। यह महाविद्यालय वैदिक ज्ञान, दर्शन, संस्कृत और योग के अध्ययन के लिए समर्पित होगा। उन्होंने कहा, “आज आवश्यकता है कि वेदों और वैदिक ज्ञान को केवल धार्मिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि शैक्षणिक स्तर पर भी बढ़ावा दिया जाए, जिससे नई पीढ़ी इस महान धरोहर से परिचित हो सके
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