S1E9- बागपत की बगिया | बागपत का संपूर्ण इतिहास | Baghpat Full Documentary | Jaiswal Media
Автор: Jaiswal Media
Загружено: 2021-07-27
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S1E9- बागपत की बगिया | History Of Baghpat | Baghpat Full Documentary | Jaiswal Media
कविता
कभी बाघों के शहर थे हम,कभी भाषण देने का कहर थे हम।
मिली थी सौगात हमे, इतिहास के पन्नों में छिपे नामो से,
जमीदोंज हो गयी आज, हमारी विरासत अपने ही कारनामो से।।
पाशर्वनाथ की कुटिया हू मैं, वाल्मीक के तपोभूमि का सानी हू।
सीता की त्याग तपस्या हू मैं, लव-कुश की जन्म निशानी हूँ।।
हरियाणे की चौखट हू मैं, पश्चिम यू.पी का है, ताज मिला।
बागपत की बगिया में ना किसी से है, शिकवा-गिला।।
मजहब का कोई धौंस नही, ना धर्म किसी का खतरे में।
रहते है प्यार मोहब्बत से,ना पड़ते किसी के पैंतरे में।
इतिहास
बागपत ज़िला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय बागपत है।[1][2] 1857 की क्रांति यही की बड़ौत तहसील से शुरू हुई जो उस समय मेरठ का ही हिस्सा थी।
अनुक्रम
1 इतिहास
2 पर्यटन
2.1 इन्हें भी देखें
2.2 सन्दर्भ
इतिहास
ज़िले का नाम बागपत शहर पर है, जो "व्याघप्रस्थ" (अर्थात् शेरों का स्थान) या "वाक्यप्रस्थ" (अर्थात् भाषण देने का स्थान) से उत्पन्न माना जाता है। मुग़ल साम्राज्य काल में इसका नाम "बागपत" रखा गया। इसमें एक छोटी-सी मण्डी हुआ करती थी, जो 1857 के विद्रोह के बाद एक तहसील केन्द्र बनी और फिर धीरे-धीरे बढ़ती गई।[3] उस समय यह मेरठ ज़िले का भाग था। सन् 1997 में इसे अलग कर के एक नया ज़िला बनाया गया।[4][3]
पर्यटन
लाक्षागृह:शकुनी की नीति के तहत दुर्योधन ने पांडवों के रुकने के लिए एक ऐसा महल बनवाया था, जो लाख से बना थे जिसे बाद में लाक्षागृह कहा गया। लाख से बनी चुड़ियां तो आपने देखी ही होगी। यह लाख तेती से पिघलता है। दुर्योधन की योजना के अनुसार इस महल में रात में चुपचाप से आग लगा दी गई थी ताकि सोते हुए पांडवों की इस महल में ही जलकर मृत्यु हो जाए। किन्तु पांडवों के जासूसों ने उन्हें इस योजना की सूचना देदी और वे रात को ही एक गुप्त सुरंग से निकल भागे। ये सुरंग आज भी है, जो हिंडन नदी के किनारे पर खुलती है।
लाख से बनें महल के अवशेष आज भी बरनावा में पाए जाते हैं। यह बरनावा या वारणावत नामक स्थान मेरठ जिले में स्थित है। मेरठ से 35 और सरधना से 17 किलोमीटर दूर बागपत जिले में स्थित एक तहसील का नाम वारणावत है। यहां महाभारत कालीन लाक्षाग्रह चिन्हित है। लाक्षाग्रह नामक इमारत के अवशेष यहां आज एक टीले के रूप में दिखाई देते हैं
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