Kawad Yatra | कावड़ यात्रा | Kabir Gyan | तीरथ जाए एक फल, संत मिले फल चार |
Автор: ᴍʏ ɢᴜʀᴜ ᴊɪ ᴍʏ ɢᴏᴅ
Загружено: 2024-07-30
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तीरथ बाट चले जो प्राणी, सो तो जन्म जन्म उरझानी।
जाय तीरथ करि हैं दानं, आवत जात जीव मरै अरबानं।।
सर्वशक्तिमान कबीर जी अपनी अमृतवाणी में कहते हैं कि जो भक्त तीर्थ यात्रा के लिए जाते हैं वे रास्ते में लाखों सूक्ष्म जीवों को मारते हैं, जिससे उन्हें कोई लाभ नहीं मिलता है; उल्टे पाप भोगना पड़ता है। अत: दान करने, स्नान करने और तीर्थ स्थानों पर जाने से उन्हें कोई लाभ नहीं होता है। ऐसे साधक मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाते हैं और 84 लाख योनियों में कष्ट भोगते हुए ब्रह्म-काल के जाल में फंसे रहते हैं।
केदारनाथ, अमरनाथ जैसे धामों में घटित हुई प्राकृतिक आपदाओं ने यह साबित कर दिया है कि भक्तों को जीवन का खतरा हमेशा बना रहता है, साथ ही भगदड़ का भी डर रहता है जो एक समय में लाखों लोगों की मौत का कारण बनता है।
कबीर, गुरू बिन वेद पढै़ जो प्राणी। समझै न सार रहे अज्ञानी।।
कबीर, गुरू बिन काहु न पाया ज्ञाना। ज्यों थोथा भुस छडे़ मूढ़ किसाना।।
अड़सठ तीर्थ भ्रम भ्रम आवे। सो फल गुरु के चरना पावे।।
तीर्थ कर कर जग मुवा, ठंडे पानी नहाय।
सतनाम जपा नहीं, काल घसीटे जाए।।
इसका उल्लेख सूक्ष्मवेद में किया गया है:
अड़सठ तीर्थ भ्रम-भ्रम आवै। सो फल सतगुरू चरणों पावै।।
गंगा, यमुना, बद्री समेते। जगन्नाथ धाम हैं जेते।।
भ्रमें फल प्राप्त होय न जेतो। गुरू सेवा में फल पावै तेतो।।
कोटिक तीर्थ सब कर आवै। गुरू चरणां फल तुरंत ही पावै।।
सतगुरू मिलै तो अगम बतावै। जम की आंच ताहि नहीं आवै।।
भक्ति मुक्ति का पंथ बतावै। बुरा होन को पंथ छुड़ावै।।
सतगुरू भक्ति मुक्ति के दानी। सतगुरू बिना ना छूटै खानी।।
सतगुरू गुरू सुर तरू सुर धेनु समाना। पावै चरणन मुक्ति प्रवाना।।
व्याख्या- सूक्ष्मवेद में कहा गया है कि तीर्थों के दर्शन मात्र करने से कोई लाभ नहीं मिलता। सतगुरु (तत्वदर्शी संत) के सत्संग सुनना ही असली तीर्थ है। जिस स्थान पर सतगुरु का सत्संग होता है वह स्थान सबसे श्रेष्ठ तीर्थ है। यही प्रमाण संक्षिप्त श्रीमद् देवी भागवत महापुराण में दिया गया है। इसके छठे स्कंद के अध्याय 10 में बताया गया है कि सर्वोत्तम तीर्थ 'चित्त शुद्ध तीर्थ' (आत्मा की शुद्धि) है जहां एक प्रबुद्ध संत का आध्यात्मिक प्रवचन होता है। उस सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान से आत्मा शुद्ध होती है। जिसे सुनकर शास्त्र आधारित सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान और उपासना बढ़ती है; जिससे आत्मा का कल्याण होता है। बाकी सभी तीर्थ भ्रम मात्र हैं। इसी पुराण में कहा गया है कि सतगुरु रूप तीर्थ अत्यंत दुर्लभ है।
सूक्ष्मवेद में बताया गया है कि सतगुरु पुराणों में वर्णित 'कल्पवृक्ष' और 'कामधेनु' के समान हैं जो हर इच्छा पूरी करते हैं। उसी प्रकार सतगुरु सच्ची भक्ति प्रदान करके साधकों को जीवन में सभी सुख-सुविधाएँ प्रदान करते हैं और अपने आशीर्वाद से अनेकों लाभ देते हैं। सच्ची भक्ति देकर सतगुरु अपनी सबसे प्रिय आत्मा की मुक्ति का मार्ग आसान कर देते हैं। इसलिए ऐसा कहा गया है;
कबीर, एकै साथै सब सधै, सब साधै सब जाय।
माली सींचै मूल कूँ, फूलै फलै अघाय।।
अर्थ- सतगुरु रूपी तीर्थ के दर्शन करने से सभी प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं अन्य तीर्थयात्रा और अंधभक्ति करने से मिलने वाले सारे लाभ भी समाप्त हो जाते हैं।
कबीर, तीरथ जाए एक फल, संत मिले फल चार।
सतगुरू मिले अनेक फल, कह कबीर विचार।।
अर्थ- तीर्थ करने से एक पुण्य मिलता है, लेकिन संतो की संगति से 4 पुण्य मिलते हैं। और सच्चे गुरु (सतगुरू) के पा लेने से जीवन में अनेक पुण्य मिल जाते हैं तथा उनके द्वारा बताई शास्त्रानुकूल सत्य साधना करने से मोक्ष भी मिल जाता है। https://www.jagatgururampalji.org/hi/gyan-...
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