श्री मदभगवद गीता अध्याय -5 |Shree madbhagvad Geeta Chapter -5 |
Автор: Ved Chakr Bhakti
Загружено: 2025-11-10
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कर्मयोग: कर्म और संन्यास की एकता | गीता अध्याय 5
Description:
श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 5 'कर्मसंन्यास योग' में, भगवान कृष्ण ज्ञानयोग (संन्यास) और कर्मयोग की श्रेष्ठता पर अर्जुन के संदेह को दूर करते हैं और सिद्ध करते हैं कि दोनों का अंतिम लक्ष्य एक ही है। यह अध्याय सिखाता है कि जो व्यक्ति फल की आसक्ति को त्यागकर अपना कर्तव्य (कर्म) करता है, वह कर्म करते हुए भी संन्यासी है। आसक्ति रहित होकर, अपने कर्मों को ईश्वर को समर्पित करने वाला व्यक्ति पाप से उसी प्रकार अलिप्त रहता है जैसे कमल का पत्ता जल में रहकर भी उससे अप्रभावित रहता है। यह हमें शांति, समभाव और मोक्ष की ओर ले जाता है।
Video में शामिल विषय:
कर्मयोग और संन्यास योग का महत्व।
कर्मफल की इच्छा का त्याग कैसे करें।
निष्काम कर्म का वास्तविक अर्थ।
ज्ञान, समता और ब्रह्म की प्राप्ति |
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