स्वामी मन्मथन | केरल का संत जिसने पहाड़ों की तस्वीर बदली | Swami Manmathan
Автор: Baramasa
Загружено: 2025-02-15
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साल 1967. नवरात्रों के दिन थे और हर साल की तरह इस बार भी टिहरी ज़िले के सुप्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक, माँ चंद्रबदनी मंदिर में जानवरों की बलि दिए जाने की तैयारियाँ चल रही थी. प्रचलन था कि माता को प्रसन्न करने के लिये 1 भैंस और 9 बकरों की बलि देना ज़रूरी है. इसी प्रथा को दोहराया जाना था इसलिए मंदिर में स्थानीय श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जमा थी. मंदिर प्रांगण में मेले जैसा माहौल था लेकिन इस बार के नवरात्र पहले की तुलना में कुछ अलग थे. इस बार यहां के माहौल में एक अलग-सा तनाव महसूस किया जा सकता था. ऐसे में जब जानवरों को बलि के लिये ले जाया जाने लगा, तो अचानक भीड़ को चीरता हुआ एक पतली काया और लम्बी दाढ़ी वाला व्यक्ति सामने आया और उसने उद्घोष किया कि 'अगर माता को प्रसन्न करने के लिए किसी निरीह जानवर की बलि दी जानी है तो उससे पहले तुम लोगों को मेरी बलि देनी होगी.’
ये बोल थे स्वामी मन्मथन के जिन्होंने जीवन भर उत्तराखंड के पहाड़ों में व्याप्त रूढ़ियों और कुरीतियों के खिलाफ समाज को जागरूक करने का काम किया और पहाड़ में लोगों के आर्थिक उत्थान, विशेषकर महिलाओं के लिये 'भुवनेश्वरी महिला आश्रम' की स्थापना की.
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