श्री आदिमाता अशुभनाशिनी स्तोत्र
Автор: Mantra - Tantra - Yantra ( मंत्र - तंत्र - यंत्र )
Загружено: 2025-09-24
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मंत्र तंत्र यंत्र चॅनेल मे आप सभी का स्वागत है आज मै आप सभी के लिए श्री आदिमाता अशुभनाशिनी स्तोत्र लेकर आया हु
श्री आदिमाता अशुभनाशिनी स्तोत्रम् एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसमें आदिमाता जगदंबा की महिमा और कृपा का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र जीवन में उपस्थित सभी अशुभ प्रभावों, बाधाओं और नकारात्मकता को तुरंत समाप्त करता है। इस स्तोत्र का श्रद्धा भक्ति के साथ पाठ करके अथवा सुनने से माता की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है, व्यक्ति और उसके परिवार के जीवन में शुभता, सुख और शांति का संचार होता है।
मां चंडी के आराधना में यह स्तोत्र काफी महत्वपूर्ण है
यह स्तोत्र पापनाशिनी चण्डिका देवी की स्तुति करता है, जो भक्तों के समस्त पापों और कष्टों का नाश करती हैं।
देवी को त्रिमूर्ति माता के रूप में वर्णित किया गया है, जो पतिव्रता, प्रेमत्राता और तपमालिनी स्वरूप में भक्तों के दुखों का नाश करती हैं।
देवी के महिषासुरमर्दिनी रूप का भी विशेष उल्लेख है, जो समस्त बाधाओं और शत्रुओं का नाश करती हैं।
इस स्तोत्र का पाठ भक्तों के मनोबल को मजबूत करता है और उन्हें आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है।
यह स्तोत्र में आप सभी के लिए जाप करके दे रहा हूं कृपया इसे सुने और लाभ लें चैनल को शेयर करें सब्सक्राइब करें इसी गुरु दक्षिणा की हम आपसे आशा करते हैं धन्यवाद
श्री आदिमाता अशुभनाशिनी स्तोत्रम्
प्रणवमाते गतित्राते गयःत्राते भर्गमालिनी |
पापनाशिनी चण्डिके श्रीगायत्रि नमोSस्तु ते ||१||
त्रिमूर्तिमाते पतिव्रते प्रेमत्राते तपमालिनी |
दु:खनाशिनी चण्डिके अनसूये नमोSस्तु ते ||२||
भावस्था त्वं नामाधारा नादस्था मन्त्रमालिनी |
अशुभनाशिनी चण्डिके महिषासुरमर्दिनि नमोSस्तु ते ||३||
सर्वबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्य अखिलेश्वरी |
एवमेव त्वया कार्यं अस्मद् वैरिविनाशनम् ||४||
पिशाचदैत्यदुर्मान्त्रिकादि-सर्वशत्रुविनाशिनि |
ॐ नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै
रक्ष रक्ष परमेश्वरि ||५||
रोगानशेषान् अपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलान् अभीष्टान् त्वां आश्रितानां न विपन्नराणां त्वां आश्रिता ह्याश्रेयतां प्रयान्ति ||६||
ॐ नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै
क्षमस्व मे परमेश्वरि ॐ नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै नमश्चण्डिकायै प्रसीद मे परमेश्वरि ||७||
अष्टादशभुजे त्रिधे श्रीदुर्गे सिंहवाहिनी |
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि शुभंकरे नमोSस्तु ते ||८||
बिभिषण उवाच
पापोSहं पापकर्माSहं पापात्मा पापसंभवः |
त्राहि मां आदिमाते सर्वपापहरा भव ||९||

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