aaj ke darshan व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशीWednesday, 03 December 2025
Автор: raju bhai Nathdwara
Загружено: 2025-12-02
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व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी
Wednesday, 03 December 2025
श्रीजी में चतुर्थ (अमरसी) घटा
विशेष – आज श्रीजी में चतुर्थ (अमरसी) घटा होगी. आज की घटा नियम से मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को होने वाले घर के छप्पनभोग से एक दिन पहले होती है.
मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी से मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा तक पूर्णिमा को होने वाले घर (नियम) के छप्पनभोग उत्सव के लिए विशेष सामग्रियां सिद्ध की जाती हैं. ये विशेष रूप से सिद्ध हो रही सामग्रियां प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं. इसी श्रृंखला में श्रीजी को आज उड़द (અડદિયા) के मगद के लड्डू अरोगाये जाते हैं.
यह सामग्री कल होने वाले छप्पनभोग के दिन भी अरोगायी जाएगी.
सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : खट)
सुनोरी आज नवल वधायो है l
श्रीवल्लभगृह प्रकट भये पुरुषोत्तम जायो है ll 1 ll
नयननको फल लेउ सखी भयो मन को भायो है l
गिरिधरलाल फेर प्रगटे है भाग्य ते पायो है ll 2 ll
मणिमाला वंदन माला द्वारद्वार बंधायो है l
श्रीगोकुल में घरघरन प्रति आनंद छायो है ll 3 ll
द्विजकुल उदित चंद सब विश्वको तिमिर नसायो है l
भक्त चकोर मगन आनंदित हियो सिरायो है ll 4 ll
महाराज श्रीवल्लभजी दान देत मन भायो है l
जो जाके मन हुती कामना सो तिन पायो है ll 5 ll
जाके भाग्य फले या कलिमें तिन दरशन पायो है l
करि करुणा श्रीगोकुल प्रगटे सुखदान दिवायो है ll 6 ll
मर्यादा पुष्टिपथ थापनको आपते आयो है l
अब आनंद वधायो हैरी दुःख दूर बहायो है ll 7 ll
रानी धन्य धन्य भाग सुहागभरी जिन गोद खिलायो है l
‘रसिक’ भाग्यते प्रकट भये आनंद दरसायो है ll 8 ll
साज – श्रीजी में आज अमरसी दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर अमरसी बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को अमरसी दरियाई वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी अमरसी रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – प्रभु को आज चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर अमरसी गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, अमरसी रेशम का दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
तिलक बेसर हीरा के धराये जाते हैं.
रंग-बिरंगे पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में स्वर्ण के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट अमरसी, गोटी सोने की व आरसी शृंगार में सोने की एवं राजभोग में बटदार आती है.
संध्या-आरती दर्शन उपरान्त प्रभु के श्रीमस्तक और श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम तुर्रा धराये जाते हैं और शयन दर्शन का क्रम भीतर ही होता है.
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