भारतीय काव्यशास्त्र ||काव्य लक्षण काव्य हेतु और काव्य प्रयोजन|| bharatiye kavyesastr||by Vikasp||DU
Автор: YouTube 1 Khoj
Загружено: 2025-05-09
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1. भारतीय काव्यशास्त्र (Indian Poetics):
भारतीय काव्यशास्त्र वह विशिष्ट शाखा है जो काव्य, उसकी संरचना, सौंदर्यशास्त्र, रस, अलंकार, ध्वनि आदि के सिद्धांतों का विवेचन करती है। यह संस्कृत साहित्य की एक परिपक्व और दार्शनिक दृष्टिकोण से समृद्ध परंपरा है, जिसमें भरतमुनि, मम्मट, आनंदवर्धन, अभिनवगुप्त, विश्वनाथ जैसे आचार्यों के योगदान प्रमुख हैं। इसका उद्देश्य न केवल काव्य रचना के नियमों की व्याख्या करना है, बल्कि काव्य के द्वारा आत्मिक और सामाजिक कल्याण को भी समझाना है।
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2. काव्य हेतु (Purpose of Poetry):
भारतीय आचार्यों के अनुसार काव्य का हेतु केवल मनोरंजन नहीं, अपितु पाठक या श्रोता को सत्य, शिव और सुंदर की ओर उन्मुख करना है। काव्य के माध्यम से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति संभव मानी गई है। मम्मट के अनुसार —
"शिवेतरक्षतये शब्दसार्थक्यं काव्यमुच्यते" — अर्थात् वह वाणी जिसमें कल्याण हो, वही काव्य है।
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3. काव्य प्रयोजन (Purpose/Function of Poetry):
काव्य का मुख्य प्रयोजन लोकहित, मनोरंजन, ज्ञानवर्धन, भावानुभूति, संस्कार और आत्मानुभूति होता है। रस का अनुभव कराने के साथ-साथ यह व्यक्ति के अंतर्मन को संस्कारित करता है। यह लोक शिक्षण का माध्यम भी है, जो उपदेश को आकर्षक रूप में प्रस्तुत करता है।
प्रसिद्ध प्रयोजन हैं:
श्रव्य/पाठ्य-सुख (Aesthetic Delight)
धर्मोपदेश (Moral Teaching)
ज्ञानवर्धन (Intellectual Growth)
संस्कार व प्रेरणा (Cultural Refinement)
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4. काव्य लक्षण (Definition/Characteristics of Poetry):
काव्य वह है जिसमें शब्द और अर्थ का विशिष्ट समन्वय हो, और जो रस की उत्पत्ति करे। मम्मट ने काव्य की परिभाषा इस प्रकार दी —
"शब्दार्थौ सहितौ काव्यम्" — अर्थात् जिसमें शब्द और अर्थ दोनों सामंजस्यपूर्वक हों, वही काव्य है।
कुछ प्रमुख लक्षण:
रस निष्पत्ति (रस उत्पन्न होना)
शब्द और अर्थ का सौंदर्यपूर्ण मेल
अलंकार युक्त भाषा
भाव सम्प्रेषण
पाठक में आनंद की सृष्टि
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