हैशटैग क्रांति या 'स्लैकटिविज़्म' ? सोशल मीडिया प्रोटेस्ट का कड़वा सच: क्या दुनिया बदल रही है ?
Автор: Saurabh Singh IES
Загружено: 2025-11-09
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विरोध अब सड़कों से निकलकर स्क्रीन तक पहुँच गया है। आज एक 30 सेकंड का वीडियो या एक ट्वीट दुनिया को बदल सकता है—लेकिन क्या वह वास्तव में बदल रहा है?
यह पॉडकास्ट एपिसोड डिजिटल एक्टिविज़्म की अग्निपरीक्षा करता है, यह पूछता है कि क्या एक 'लाइक' करना आपकी नैतिक ज़िम्मेदारी पूरी कर देता है, या हम अनजाने में केवल उन कॉर्पोरेशंस को ही सहयोग कर रहे हैं जिनके हम खिलाफ हैं ?
इस विश्लेषण में शामिल हैं:
अरब स्प्रिंग का सबक: कैसे 2010 में एक सब्जी बेचने वाले की चीख ने ट्यूनेशिया और इजिप्ट में सत्ता को हिला दिया, लेकिन क्यों कई जगह यह क्रांति खून में डूब गई ।
लीडरलेस मूवमेंट: ऑक्युपाई वॉल स्ट्रीट और ब्लैक लाइव्स मैटर (BLM) जैसे आंदोलनों की असली ताकत उनके विकेन्द्रीकृत (Dencentralized) स्वरूप में क्यों थी, और कैसे यह इंटरनेट की संरचना की तरह काम करता है ।
सामूहिक शक्ति: कैसे #MeToo ने महिलाओं के निजी दर्द को एक सामूहिक शक्ति में बदला, जहाँ 'मी' (Me) से ज़्यादा 'टू' (Too) महत्त्वपूर्ण हो गया ।
हैशटैग फटीक और एल्गोरिथम का खेल: क्यों डिजिटल आंदोलन तेज़ी से उठकर थम जाते हैं? कैसे एल्गोरिदम आपकी आवाज़ को दबा सकते हैं, और 'वोक मार्केटिंग' (Woke Marketing) ब्रांड्स के लिए एक नया व्यापार बन गई है ।
स्लैकटिविज़्म (Slacktivism) का खतरा: क्या सोशल मीडिया केवल एक 'सेफ्टी वॉल्व' है जो ज़मीन पर संघर्ष को आने से रोकता है? क्या 'पोस्ट' से नहीं, 'मौजूदगी' और 'लड़ाई' से इतिहास बनता है ।
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