Govardhan। श्री गोवर्धन महाराज तेरे माथे मुकुट विराज रहौ। Shree Govardhan Maharaj Maharaj Tere Mathe
Автор: Mahavir Bhagat ji rasik
Загружено: 2023-11-13
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श्री गोवर्धन महाराज तेर माथे मुकुट विराज रहौ
द्वापुर युग में जब श्री कृष्ण भगवान ने इंद्र की पूजा छुड़ाकर गोवर्धन गिरिराज जी की पूजा करवाई तो इंद्र को बहुत क्रोध आया और अपनी सभी मेघ मालाओं को आदेश दिया कि
जाओ बृजभूमि को अपनी जल की धाराओं से डुबोदो।
इंद्र के आदेश अनुसार मेघों ने सात दिन और सात रात तक मूसलाधार वर्षा की
बृजवासी घबड़ाये थे लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को ऊँगली पर उठा लिया पूरा बृज गोवर्धन पर्वत के नीचे आ गया और बृज में वर्षात की एक भी बूँद बृज में नहीं आई ।
इंद्र को खबर पड़ी तो वह गोवर्धन में आकर भगवान श्री कृष्ण से माफी मांगने लगा और गोवर्धन महाराज को शिर झुकाकर प्रणाम करने लगा तब श्री कृष्ण ने इंद्र को छमा किया।
श्री कृष्ण ने बृजवासियों के साथ गोवर्धन महाराज की पूजा की
एक रूप बृजवासियों के साथ ग्वाला का रखा और दूसरा रूप गोवर्धन महाराज का रखकर समस्त बृजवासियों का भोग प्रसाद अरोगने लगे। उसके बाद सभी बृज के निवासियों के साथ बड़े प्रेम से परिक्रमा लगाई।
गोवर्धन महाराज को आशीर्वाद भी दिया कि कलियुग में तुम मेरे ही स्वरूप में पूजे जाओगे तभी से गोवर्धन महाराज की पूजा प्रारंभ हुई।
जय श्री कृष्ण, जय गोवर्धन नाथ जी की
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