Arsa recipe Of Uttarakhand || गुड़ पीठा || Garhwali Sweet Dish Arse || Mohit Sajwan | Mrsajwan Vlogs
Автор: Mrsajwan Vlogs
Загружено: 2024-12-14
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सिर्फ गढ़वाल में ही कहां से आया ‘अरसा’ ? 1100 साल पहले का इतिहास
अरसा...ये स्वाद जिसके मुंह लगा , वो आज तक इसे भूल नहीं पाया होगा। क्या आपने कभी सोचा कि आखिर अरसा सिर्फ गढ़वाल में कहां से आया ?
अरसा...इसे एक बार मुंह में रख लीजिए, तो कभी ना भूलने वाली मिठास मंह में घुल जाती है। आज खाइए, या कल खाइए, या एक महीने बाद, अरसे का स्वाद ताउम्र एक जैसा रहेगा। आज अरसा बनाने की कला हर गढ़वाली भूल रहा है। गढ़वाली हम इसलिए कहेंगे क्योंकि ये डिश आपको उत्तराखंड केे गढ़वाल में ही मिलेगी। अब सवाल ये है कि आखिर अरसा सिर्फ गढ़वाल में ही कैसे आया। अगल बगल देखो तो ना ही कुमाऊं, ना ही नेपाल, ना ही तिब्बत, ना ही हिमाचल , कहीं भी अरसा नहीं बनता, फिर ये गढ़वाल में कैसे आ गया ? कभी सोचा है ? तो लीजिए हम आपको बता दे रहे हैं। जिस अरसा को आप गढ़वाल में खाते हैं, उसे कर्नाटक या यूं कहें कि दक्षिण भारत में अरसालु नाम से पुकारते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर दक्षिण भारत का गढ़वाल स क्या कनेक्शन है ?
इसका कनेक्शन बेहद धार्मिक भी है। कहा जाता है कि जगदगुरू शंकराचार्य ने बद्रीनाथ और केदारनाथ मंदिरों का निर्माण करवाया था। इसके अलावा गढ़वाल में कई ऐसे मंदिर हैं, जिनका निर्माण शंकराचार्य ने करवाया था। इन मंदिरों में पूजा करने के लिए दक्षिण भारत के ही ब्राह्मणों को रखा जाता है। कहा जाता है कि नवीं सदी में दक्षिण भारत से ये ब्राह्मण गढ़वाल में अरसालु लेकर आए थे। दरअसल अरसा काफी दिनों तक चल जाता है, इसलिए वो पोटली भर-भरकर अरसालु लाया करते थे। धीरे धीरे इन ब्राह्मणों ने ही स्थानीय लोगों को ये कला सिखाई। लीजिए...गढ़वाल में ये अरसालु बन गया अरसा। 9वीं सदी से अरसालु लगातार चलता आ रहा है, यानी इतिहासकारों की मानें तो बीते 1100 साल से गढ़वाल में अरसा एक मुख्य मिष्ठान और परंपरा का सबूत था।
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