सम्पूर्ण अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम् हिंदी अनुवाद सहित l AshtaLakshmi Stotram with Lyrics and Hind Meaning
Автор: Vedic Sangeet (वैदिक संगीत)
Загружено: 2021-05-07
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llआदि गुरु शंकराचार्य कृत श्रीअष्टलक्ष्मीस्तोत्रम् ll
आदि लक्ष्मी
सुमनस वंदित सुंदरि माधवि, चंद्र सहॊदरि हेममये
मुनिगण वंदित मोक्षप्रदायनि, मंजुल भाषिणि वेदनुते |
पंकजवासिनि देव सुपूजित, सद्गुण वर्षिणि शांतियुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, आदिलक्ष्मि परिपालय माम् ‖ 1 ‖
आदि लक्ष्मी- देवी तुम सभी भले मनुष्यों के द्वारा वंदित,सुंदरी,माधवी (माधव की पत्नी),चंद्र की बहिन,स्वर्ण की मूर्त रूप,मुनिगणों से घिरी हुई, मोक्ष देने वाली,मृदु और मधुर शब्द कहने वाली, वेदों के द्वारा प्रशंसित हो। कमल के पुष्प पर निवास करने वाली और सभी देवों के द्वारा पूजित,अपने भक्तों पर सद्गुणों की वर्षा करने वाली,शांति से परिपूर्ण और मधुसूदन की प्रिय हे आदि लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो,जय हो,तुम मेरा पालन करों। ll 1
धान्य लक्ष्मी
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि, वैदिक रूपिणि वेदमये
क्षीर समुद्भव मंगल रूपिणि,मंत्रनिवासिनि मंत्रनुते |
मंगलदायिनि अंबुजवासिनि, देवगणाश्रित पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, धान्यलक्ष्मि परिपालय माम् ‖ 2 ‖
धान्य लक्ष्मी- हे धान्यलक्ष्मी, तुम प्रभु की प्रिय हो,कलयुग के दोषों का नाश करती हो, तुम वेदों का साक्षात् रूप हो,तुम छीर समुद्र से जन्मी हो,तुम्हारा रूप मंगल करने वाला है, मंत्रों में तुम्हारा निवास है और तुम मंत्रो से पूजित हो।तुम सभी को मंगल प्रदान करती हो,तुम कमल में निवास करती हो सभी देवगण तुम्हारे चरणों में शरण आश्रय पाते हैं। मधुसूदन की प्रिय हे धान्यलक्ष्मी ! तुम्हारी जय हो,जय हो,तुम मेरा पालन करों। ll 2
ll धैर्य लक्ष्मी ll
जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि, मंत्र स्वरूपिणि मंत्रमये
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद, ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते |
भवभयहारिणि पापविमोचनि, साधु जनाश्रित पादयुते
जय जयहे मधु सूधन कामिनि, धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम् ‖ 3 ‖
धैर्य लक्ष्मी- हे वैष्णवी, तुम विजय का वरदान देती हों,तुमने भार्गव ऋषि की कन्या के रूप में अवतार लिया, तुम मंत्र स्वरूप हो मंत्रो में वसती हो, देवताओं के द्वारा पूजित ही देवी तुम शीघ्र ही पूजा का फल देती हो,तुम ज्ञान में वृद्धि करती हों, शास्त्र तुम्हारा गुणगान करते हैं।
तुम सांसारिक भय को हरने वाली, पापों से मुक्ति देने वाली, साधू जन तुम्हारे चरणों में आश्रय पाते हैं,मधुसूदन की प्रिय हे देवी धैर्य लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो,जय हो, तुम मेरा पालन करो।
ll गज लक्ष्मी ll
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि, सर्वफलप्रद शास्त्रमये
रधगज तुरगपदाति समावृत, परिजन मंडित लोकनुते |
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित, ताप निवारिणि पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि,
श्री गजलक्ष्मी पालय माम् ‖ 4 ‖
गजलक्ष्मी रूपेण पालय माम्
गज लक्ष्मी- हे दुर्गति का नाश करने वाली विष्णु प्रिया,सभी प्रकार के फल (वर) देने वाली, शास्त्रों में निवास करने वाली देवी तुम्हारी जय जयकार हो,तुम रथों, हाथी-घोड़ों और सेनाओं से घिरी हुई हो,सभी लोकों में पूजित हो।
तुम हरि, हर (शिव) और ब्रह्मा के द्वारा पूजित हो,तुम्हारे चरणों में आकर सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं,मधुसूदन की प्रिय हे देवी गज लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो,जय हो, तुम मेरा पालन करो।
ll सन्तान लक्ष्मी ll
अयिखग वाहिनि मोहिनि चक्रिणि,
राग-विवर्धिनि ज्ञानमये
गुणगणवारधि लोकहितैषिणि,
सप्तस्वर भूषित गाननुते |
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर,
मानव वंदित पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, संतानलक्ष्मी परिपालय माम् ‖ 5 ‖
सन्तान लक्ष्मी- गरुण तुम्हारा वाहन है,मोह में डालने वाली,चक्र धारण करने वाली, राग(संगीत) से तुम्हारी पूजा होती है,तुम ज्ञानमयी हो,तुम सभी शुभ गुणों का समावेश हो,तुम समस्त लोक का हित करती हो,सप्त स्वरों के गान से तुम प्रशंसित हो।सभी सुर (देवता),असुर,मुनि और मनुष्य तुम्हारे चरणों की वंदना करतें हैं,मधुसूदन की प्रिय हे देवी संतान लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो,जय हो, तुम मेरा पालन करो।
ll विजय लक्ष्मी ll
जय कमलासिनि सद्गति दायिनि, ज्ञानविकासिनि गानमये
अनुदिन मर्चित कुंकुम धूसर,
भूषित वासित वाद्यनुते |
कनकधरास्तुति वैभव वंदित,
शंकरदेशिक मान्यपदे
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, विजयलक्ष्मी परिपालय माम् ‖ 6 ll
विजय लक्ष्मी- कमल के आसन पर विराजित देवी तुम्हारी जय हो,तुम भक्तों के ब्रह्माज्ञान को बढ़ाकर उन्हें सदगति प्रदान करती हो,तुम मंगलगान के रूप में व्याप्त हो,प्रतिदिन तुम्हारी अर्चना होने से तुम कुमकुम से ढकी हुई हो,मधुर वाद्यों से तुम्हारी पूजा होती है।
तुम्हारे चरणों के वैभव की प्रशंसा आचार्य शंकर और देशिक ने कनकधारा स्त्रोत में की है,मधुसूदन की प्रिय हे देवी विजय लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो,जय हो, तुम मेरा पालन करो।
ll विद्या लक्ष्मी ll
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि, शोकविनाशिनि रत्नमये
मणिमय भूषित कर्णविभूषण,
शांति समावृत हास्यमुखे |
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि, कामित फलप्रद हस्तयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि,
विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम् ‖ 7 ‖
विद्या लक्ष्मी- (भक्तों)सुरेश्वरि को, भारति, भार्गवी,शोक का विनाश करने वाली,रत्नों से शोभित देवी को प्रणाम करों।विद्यालक्ष्मी के कर्ण (कान) माणियों से विभूषित हैं,उनके चहरे पर भाव शांति और मुस्कान है।
देवी तुम नवनिधि प्रदान करती हो,कलयुग के दोष हरती हो,अपने वरद हस्त से मनचाहा वर देती हो, मधुसूदन की प्रिय हे देवी विद्या लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो,जय हो, तुम मेरा पालन करो।
धन लक्ष्मी- दुन्दुभी (ढोल) के धिमी-धिमी स्वर से तुम परिपूर्ण हो, घुम-घुम घुंघुम की ध्वनि करते हुए शंख नाद से तुम्हारी पूजा होती है, वेद,पुराण और इतिहास के द्वारा पूजित देवी तुम भक्तों को वैदिक मार्ग दिखाती हो,मधुसूदन की प्रिय हे देवी धन लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो,जय हो, तुम मेरा पालन करो।
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