देखो गगन के बीच, श्याम कंज खिल रहा || शार बचन छन्द बन्द भाग दूसरा 🙏🙏🌹🌹🌺🌺🌷🙏🙏
Автор: Soami Bagh
Загружено: 2024-09-29
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देखो गगन के बीच, श्याम कंज खिल रहा || शार बचन छन्द बन्द भाग दूसरा
सातवाँ शब्द
देखो गगन के बीच, श्याम कंज खिल रहा।
भँवरा गया लुभाय, वहीं चढ़ के मिल रहा।।१।।
धोखे का वह मुकाम, उसे देखता रहा।
बहु सिद्ध नाथ जोगी, उन्हें पेखता रहा।।२।।
काल अपना जाल एक, जुदा ही बिछा रहा।
जो जो गये वहाँ, उन्हें उलटावता रहा।।३।।
नाना कला दिखाय, वहीं मोहता रहा।
सब की कमाई आप, खड़ा खोसता रहा।।४।।
क्या क्या कहूँ, अनर्थ बहुत भाँति कर रहा।
बिन संत सतगुरू, वह सभी को निगल रहा।।५।।
आगे न कोइ जाय, इसी में भुला रहा।
माया का झूला डाल, मुनन को झुला रहा।।६।।
द्वारे के पार काहु को, जाने न दे रहा।
फिर भेद व्हाँ के पार का, सबही ढका रहा।।७।।
क्या शेष क्या महेश, सभी हार कर रहा।
बिन संत उसके पार, कोई भी न जा रहा।।८।।
सो भेद राधास्वामी, सभी को सुना रहा।
जिस पर है मेहर उनकी, वह परतीत ला रहा।।९।।
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