लोकयात्री जिसने जीता Gandhi, Nehru, Tagore का दिल | देवेंद्र सत्यार्थी: रचना-संचयन | Prakash Manu
Автор: Sahitya Tak
Загружено: 2023-07-25
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''अगर तराजू के एक पलड़े पर मेरे और जवाहरलाल के सारे भाषण रख दिए जाएं और दूसरे पर अकेला यह लोकगीत, तो लोकगीत वाला पलड़ा ही भारी रहेगा." यह कथन था महात्मा गांधी का. दरअसल देवेंद्र सत्यार्थी जी ने लोकगीतों के व्यापक महत्त्व पर बोलते हुए अंग्रेज़ी राज में हाहाकार करती जनता के दर्द पर जब "रब्ब मोया, देवते भज्ज गए, राज फिरंगियां दा...!" लोकगीत सुनाया तो हर ओर स्तब्धता सी छा गई. इस लोकगीत पर तब गांधी जी ने यह टिप्पणी की थी. देवेंद्र सत्यार्थी लोक साहित्य के दरवेश हैं, जिन्होंने दशकों पहले लोकगीतों की खोज में इस महादेश का चप्पा-चप्पा छान मारा था. लोकगीतों में उन्हें धरती का सच्चा दर्द और आवाजें सुनाई पड़ती थीं. साथ ही भारतीय जनता का सच्चा रस-उल्लास, आनंद-उत्सव, रीति-रिवाज, लोक परंपराएं, राग-विराग और सुख-दुख की वे अनकही बातें भी, जो हज़ारों हृदय में घुमड़ती थीं और फिर चुपके-चुपके किसी जनपद या ग्रामांचल के लोकगीतों में ढलकर हवा में गूंज उठती थीं.
देवेंद्र सत्यार्थी की अथक लोक यात्राओं ने ही उन्हें कथाकार बनाया. उन्होंने कहानी, रेखाचित्र, संस्मरण, उपन्यास, कविता- हर एक विधा में हाथ आजमाया और ख़ासकर उनके कथा साहित्य की खासी धूम रही. उस ज़माने में उर्दू में मंटो, बेदी, कृश्न चंदर और इस्मत चुग़ताई के साथ सत्यार्थी जी की कहानियां खूब धज के साथ छपती थीं और जोरों से उनकी चर्चा होती थी. एक बेहतरीन कथाकार के बावजूद सत्यार्थी जी हृदय से कवि थे. साहिर ने सत्यार्थी जी की कविताओं को हिंदी में अपने ढंग की 'सिरमौर कविताएं' कहा था.
महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ ठाकुर, नंदलाल बोस, पाब्लो नेरूदा आदि कई ख्याति प्राप्त व्यक्तित्वों के निकट संपर्क में रहे सत्यार्थी जी ने इन पर अनूठे रेखाचित्र भी लिखे हैं. इससे इतर सत्यार्थी जी का पत्र-व्यवहार भी ऐतिहासिक महत्त्व रखता है. हिंदी में लोकगीतों का उनका पहला संग्रह 'धरती गाती है' 1948 में प्रकाशित हुआ था, जबकि पंजाबी लोकगीतों का संकलन 'गिद्दा ' 1936 में ही आ चुका था. चार लोकगीत-संग्रहों के अलावा इनकी प्रमुख पुस्तकें हैं- "चहान से पूछ लो', 'चाय का रंग', 'घूंघट में गोरी जले' (कहानी-संग्रह), रेखाएँ बोल उठीं', 'क्या गोरी क्या सांवरी', 'कला के हस्ताक्षर (निबंध और रेखाचित्र), 'रथ के पहिए', 'कठपुतली', 'कथा कहो उर्वशी', 'तेरी कसम सतलुज', 'घोड़ा बादशाह' (उपन्यास), 'चाँद सूरज के वीरा (आत्मकथा) आदि.
ऐसे बहुआयामी लेखक, लोक यात्री देवेंद्र सत्यार्थी की रचनाओं का संचयन एवं संपादन करने के लिए हमारे समय के जागरूक और अनवरत सक्रिय साहित्यकार प्रकाश मनु बधाई के पात्र हैं. बुक कैफे के 'एक दिन एक किताब' कार्यक्रम में आज वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय ने प्रकाश मनु द्वारा चयनित एवं संपादित 'देवेंद्र सत्यार्थी: रचना-संचयन' पुस्तक की चर्चा की है. साहित्य अकादेमी से प्रकाशित 403 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 400 रुपए है.
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